For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा: नाक और पेट

एक तो उसके पिता जी के वकालत के दिनों में ही घर की माली हालत ठीक नहीं थी, तिस पर अचानक हुई उस दुर्घटना ने गरीबी में आटा गीला करने का काम किया। घर-गहने बिका देने वाले इलाज़ ने किसी तरह पिता जी की जान तो बचा ली गई लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी टूटने ने ना सिर्फ उन्हें बल्कि घर की अर्थव्यवस्था को ही अपाहिज बना दिया। खेलने-खाने के दिनों में जब उसने सिर पर घर के छः सदस्यों की जिम्मेवारी को मह्सूस किया तो गेंद-बल्ला सब भूल गया। पढ़ाई के साथ-साथ ही कुछ काम करने के बारे में सोचा। वामन पुत्र था और देखने-सुनने में भी ठीक था सो ज्यादा भाग-दौड़ न करनी पड़ी, कस्बे की प्रमुख रामलीला में राम की मूर्ति (पात्र) के लिए उसका चयन हो गया। वह खुश था कि चलो कुछ दिनों के लिए तो गुज़ारे का प्रबंध हो गया।
महीने भर की रामलीला में उसने आगे के कुछ महीनों के लिए बचत कर ली। ऊपर से रामलीला समिति ने रामलीला के दौरान उसके द्वारा पहना गया चांदी का मुकुट भी उसे उपहार में दे दिया। पर अगले महीनों में कुछ और काम न मिला। किस्मत की बात कि उसके मोहल्ले में होने वाली एक दूसरी छोटी रामलीला के लिए भी उसके पास राम बनने का प्रस्ताव आया। उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
जब यह खबर प्रमुख रामलीला के आयोजकों तक पहुँची तो यह उन्हें नागवार गुज़रा। आयोजन समिति के महामंत्री ने आकर उसे समझाया
- देखो नासमझी मत दिखाओ, आप एक बार चांदी में पुज चुके हो अब गिलट(के मुकुट) में कैसे पुज सकते हो भला? यह हमारी नाक का सवाल है, उनकी पेशगी लौटा दो, वो कोई नया लड़का ढूंढ लेंगे।
- मगर मैं इस स्थिति में नहीं कि इस प्रस्ताव को नकार सकूँ। यह मेरे पूरे परिवार के पेट का भी सवाल है।
- मुझे समिति ने जो कहने को कहा था सो मैंने कह दिया, इतना बताये देता हूँ कि यहाँ मूर्ति बन गए तो अगली बार हमारे यहाँ दोबारा मौका नहीं मिलेगा। अच्छे से सोच-विचार कर लो। अब चलता हूँ, जय सियाराम।
कुछ दिन पहले जो सारे कस्बे के लिए राम था, अब वो असल जीवन में नाक और पेट के युद्ध में फंसा था, न लक्ष्मण साथ थे और न हनुमान।

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on December 18, 2012 at 6:30pm

राम बेचारे, काम के मारे, अब् किसके सहारे, अब न लखन ना हनुमान रे......

बधाई...

Comment by Dipak Mashal on December 18, 2012 at 6:13pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी बात से इत्तेफाक रखता हूँ, इस लघुकथा को सुधारने का प्रयास करूंगा। आभार 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 18, 2012 at 11:16am

बहुत अच्छी लघुकथा है दीपक जी। समाज का एक कड़वा सच।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 18, 2012 at 10:10am

नाक और पेट की जंग को सुन्दर पात्रों के साथ प्रस्तुत किया है,मानस पटल पर पूरा चित्र खींचने में सक्षम यह लघुकथा, सुप्त विचारों पर प्रहार करती है. हार्दिक बधाई इस सुन्दर लघु कथा के लिए.

Comment by वीनस केसरी on December 18, 2012 at 1:23am

ऊंची नाक वाले लोगों को पिचके हुए पेट नहीं दीखते .....

लघु कथा ने देर तक़ और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया ......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 11:22pm

’शरीर भर राम था’ या ’शरीर में राम था’ के ऊहापोह से गुजरने को न्यौतती यह कथा पाठकों के सामने व्यावहारिक सीमाओं और सामाजिक विद्रुपताओं को एक साथ झन्नाटे से पटक देती है. कथा के पात्रों के स्तर पर भूख और निवाले की सनातन लड़ाई में जबकि जीतना भूख को चाहिये, अक्सर निवाला जीतता रहा है, पेट को ठेंगा दिखाता हुआ ! पेट बेचारा बरबस भूख की उंगलियाँ थामे निवाले के सामने निरुपाय दिखा है.

बढिया तथ्य पर बेहतर कथा. यों कथ्य में थोड़ी और कसावट संप्रेषणीयता को सान्द्र करती हो्ती. 

बधाई और शुभकामनाएँ .. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
6 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service