For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोर के पंछी

तुम ...
रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी
तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,
सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,
खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट
और मैं ...
मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,
नींदों में मुस्करा देती थी,
तुम्हें पा लेती थी।

पर सुनो!
सुन सकते हो क्या ... ?
मैं अब
तुम्हें पा नहीं सकती थी,
एक ही रास्ता बचा था केवल,
मैं .. मैं तुमसे दूर जा सकती थी,
दू...र, बहुत दूर चली गई।

पर दूर जाती छूटती दिशाओं को पकड़ न सकी
अपनी कुचले-इरादों-भरी ज़िन्दगी से उन्हें मैं
हटा न सकी, मिटा भी न सकी,
हाँ, मिटाने के असफ़ल प्रयास में हर दम
मैं स्वयं कुछ और मिटती चली गई ....

जो कभी देखोगे मुझको तो पहचानोगे भी नहीं,
मैं वह न रही कि जिसको तुम जानते थे कहीं,
प्यार से पुकारते थे तुम,
या, शायद पुकारते हो प्यार से अभी भी
अपनी दीवानगी में ... कभी-कभी।

प्रवाहित हवाओं को मैं रोक न सकी,
गति को उनकी मैं थाम न सकी
गंतव्य को जान न सकी।
यह हवाएँ जो ले आती हैं तुम्हारी पुकार
हर भोर मेरे पास, इतनी पास,
यह मुझको बींध-बींध जाती हैं ...
मेरे भोर के सुनहले पंछी
तुम तो वही रहे
मैं वही रह न सकी।
--------

विजय निकोर

vijay2@comcast.net

Views: 1046

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 1:37pm

एक पुकार ,,,,,निरीह और पारदर्शी सी मन के आर पार,,,,

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 2:24am

आदरणीया सीमा जी,

कविता की सराहना के माध्यम उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ।

नव-वर्ष की शुभकामनाओं के साथ,

विजय निकोर

Comment by seema agrawal on January 2, 2013 at 9:06pm

आदरणीय विजय जी रचना के माध्यम से पूरे अतीत  को वर्तमान  के समक्ष खडा कर दिया है आपने 

एक करुण गुहार जो अब शायद और भी दूर चली गयी है .......

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 8:06pm

Like के लिए धन्यवाद लक्ष्मण प्रसाद जी।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 8:04pm

आदरणीय राजेश कुमार जी,

आपकी सराहना मेरा संबल है। अतिशय धन्यवाद।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 2, 2013 at 8:02pm

आदरणीय सौरभ भाई,

इतनी उदार प्रतिक्रिया के लिए मेरा हार्दिक आभार।

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:26pm

एक चलचित्र की भांति एक-एक दृश्‍य मानस पटल पर उभारती एक कसी हुई रचना, सादर आभार इसे शेयर करने के लिए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2013 at 3:29pm

आदरणीय विजय जी, आपकी रचना प्रभावित कर गयी.

अनुभूति के विस्तार को प्रकृति चाहे जो आयाम  --और आवरण भी--  दे, इसी प्रकृति का अनन्य अंग मनुष्य समुदाय इसे अपने हिसाब से अर्थ देता है. इस अर्थ आरोपण में कई-कई स्वप्नजीवियों को जो कुछ भोगना होता है वो सटीक ढंग से इंगित हुआ है.

इस रचना हेतु हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service