नोंच डालो ,
अस्मिता को ,बेच डालो ,
हम यही कहते रहेंगे
मौन का ...
इम्तिहान न लो ..!!
सूरज से युद्ध
करने का दुस्साहस
करता जुगनू प्रतिदिन
आकाश बँधाता ढाढस
ज़ुल्म हम सहते रहेंगे ,
हम यही कहते रहेंगे
शौर्य का
अनुमान न लो ..!!
चीखती रह जाएँगीं
विधवा घाटियाँ
जर्जर सी छत की
छूट गईं लाठियाँ
प्रतीक्षारत ,आक्रमण का
अनुचित परिणाम न हो
हम यही कहते रहेंगे ,
हौसले का ,
अनुमान न लो ..!!
मौन का,इम्तिहान न लो ..!!
-भावना-
Comment
सामयिक घटनाओं पर आपकी अच्छी पकड़ है, उन्ही घटनाओं से निकालकर यह कविता आपने बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत की हैं, हम केवल कहते रहेंगे.....सहनशीलता का इम्तहान न लो, और वो कहेंगे...इम्तहान ही तो ले रहे हैं उत्तीर्ण होकर दिखाओं.....हमारे पास तो बहुत सहनशीलता बाकी है उत्तीर्ण तो हो ही जायेंगे |
इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया भावना तिवारी जी ।
नमस्कार
आप प्रतिक्रया सही जगह दे रही हैं
पर यदि हिंदी में देंगी तो अच्छा होगा.
AADARNIYAN Dr.PRACHI JI ....HAMEN YAHAN PAR PRATIKRIY ADENA NAHIN AATA .....AAPKA BAHUT BAHUT SHUKRIYA ADAA KARTI HOON ...KYA PRATIKRIYA ISI COMMENT BOX MAIN LIKHIN JAATIN HAIN ..KRIPYAA AVGAT KARAIYEGA ....YAHAN KE NIYAMON AUR QAAYDON SEY POORI TARAH AWGAT NAHIN HAIN HAM ....!!
मौन की प्रचंड शक्ति की सशक्त अभिव्यक्ति डॉ. भावना जी, हार्दिक बधाई
आदरणीया भावना जी,
सादर
सच ही कहा, बस अब और नहीं.
बधाई
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