हँस-हँस कर करते हैं आँसू ,सुख दुःख का व्यापार ,
बाहर वाली चौखट दुखती , चुभते वन्दनवार !!
मुरझाकर भी हर पल सुरभित ,पात-पात साँसों का,
मन को मजबूती देता है ,संबल कुछ यादों का !
क्षण भर हँसता,बहुत रुलाता,कुछ अपनों का प्यार ,
सारी उमर बिता कर पाया,यह अद्भुत उपहार ..!!
सिहरन नस-नस में दौड़े जब,हाँथ हवा गह जाती,
गुजरी एक जवानी छोटी, बड़ी कहानी गाती !
यूँ तो गँवा चुके हैं अपनी,सज धज सब श्रृंगार ,
है अभिमान अभी तक करता,नभ झुककर सत्कार .!!
दो प्यासी आँखें नित जिनके,देख रहीं हैं सपने,
होली दीवाली आते हैं ,अतिथि सरीखे अपने !
क्या कम है जो खिंची नहीं है आँगन में दीवार,
काल कहाँ ले आया जीवन ,एकाकी है द्वार ..!!
संघर्षों के बीच न जाने, कैसे यौवन गुज़रा,
याद नहीं खुलकर के कब था ,हँस पाया मन पगला !
कोने -कोने दहक रहे हैं ,अनुभव के अंगार,
कब तक ढोएँ इकतरफा इन, संबंधों का भार .!
-भावना तिवारी-
Comment
आदरणीया बहुत ही सुन्दर गीत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई.
दो प्यासी आँखें नित जिनके,देख रहीं हैं सपने,
होली दीवाली आते हैं ,अतिथि सरीखे अपने !
क्या कम है जो खिंची नहीं है आँगन में दीवार,
काल कहाँ ले आया जीवन ,एकाकी है द्वार ..!!
संघर्षों के बीच न जाने, कैसे यौवन गुज़रा,
याद नहीं खुलकर के कब था ,हँस पाया मन पगला !
कोने -कोने दहक रहे हैं ,अनुभव के अंगार,
कब तक ढोएँ इकतरफा इन, संबंधों का भार .!
sundar abhivyakti hetu badhai
संबंधों की पहेली में उलझा संवेदनशील मन, क्या क्या महसूस करता है, उसकी कोमल अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर गीत..हार्दिक बधाई डॉ. भावना तिवारी जी
//दो प्यासी आँखें नित जिनके,देख रहीं हैं सपने,
होली दीवाली आते हैं ,अतिथि सरीखे अपने !//
आहा !! भावनाओं का ज्वार समेटी हुई ये पक्तियां बहुत ही ससक्त बन पड़ीं हैं, पूरी रचना कई कई बार पढ़ने को मजबूर करती है, बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें आदरणीया भावना तिवारी जी ।
भावना जी,
संघर्षों के बीच न जाने, कैसे यौवन गुज़रा,
याद नहीं खुलकर के कब था ,हँस पाया मन पगला !
कोने -कोने दहक रहे हैं ,अनुभव के अंगार,
कब तक ढोएँ इकतरफा इन, संबंधों का भार .!
इस बेहतरीन गीत-रचना के लिये दिल से बधाई... अदभूत !
bahut sundar is kavita ke liye bahut bahut badhaai aapko aadarneeyaa
भावना जी, इस सुन्दर कविता के लिए बधाई।
विजय निकोर
BAHOT KHOOB.....................
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