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आदरणीय बागी सर प्रणाम, स्त्री व्यक्तिव का एक ऐसा पक्ष आपने लघु कथा में उजागर किया है जो कलयुग है ऐसा दर्शाता है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
अच्छी लघुकथा है बागी जी, बधाई स्वीकारें
समाज में कैसे कैसे रंग व्याप्त हैं, ऐसे ही एक बदरंग पक्ष को उजागर करती इस लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय गणेश बागी जी
एक ओर जहाँ राजू की पवित्र सोंच यह थी कि.........
"तन को जो रुग्ण करे ऐसे संताप नहीं पलने देंगे
भले सगाई मृत्यु करे पर श्राप नहीं पलने देंगें.".
वहीँ राकेश कि पत्नी यानी राजू कि भाभी माँ के लिए सिर्फ औ सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है......
"संस्कृति डूबती जाती है चौराहों के व्यभिचारों में"
आदरणीय बागी सर इस लघुकथा के माध्यम से आपने समाज में हो रहे नैतिक और चारित्रिक पतन पर सटीक बात कही उसके लिए इस लघुकथा और आपको कोटिशः नमन
सादर
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