टूटती सी ताल है ,भेड़िये की खाल है ..
चीख भी न सुन सके ,कानों का ये हाल है।।
बात तो तपाक सी ,गंदली नापाक सी ..
रोम रोम जल उठे ,'तीन पात ढाक' सी ..
गंगा निर्मल कहाँ ,प्रण में अब बल कहाँ ..
स्वच्छ जलधार हो ,कोई भी हल कहाँ?
स्वदेश है पुकारता ,स्वजनों से हारता ,
हिन्द के लिए कहाँ ,स्वयं कोई वारता ?
कुर्सी में गोंद है, उठना मोहाल है
मोटी सी तोंद है,गीदड़ सा हाल है ..
किसको पुकारते,किस पथ निहारते ?
अपनों पे घात को ,चुप से स्वीकारते ..
कोई परिवर्तन हो,कभी आत्म मंथन हो ..
सत्य ह्रदय में जागे ,पुनः हिन्द वंदन हो ..
Comment
Rajesh kumari ji बहुत बहुत धन्यवाद आप का :)
इस खूबसूरत प्रवाह युक्त समसामयिक रचना हेतु बहुत बहुत बधाई लता जी
Er. Ganesh Jee "Bagi ji, SANDEEP KUMAR PATEL ji , Saurabh Pandey ji और PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ji बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का !
कोई परिवर्तन हो,कभी आत्म मंथन हो ..
सत्य ह्रदय में जागे ,पुनः हिन्द वंदन हो
आदरणीया लाता जी सादर
बहुत बढ़िया बधाई
अंतरगेयता से पगी इस कविता के लिए हृदय से धन्यवाद, आदरणीया लता जी.एक अरसे बाद आपको इन पन्नों में देखना सुखद लगा.
इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाई स्वीकार करें -
स्वदेश है पुकारता ,स्वजनों से हारता ,
हिन्द के लिए कहाँ ,स्वयं कोई वारता ?
सच कहा
ये उमड़ते विचार हर किसी के मन में लोट रहे हैं
लेकिन ये सब कुछ लोग व्यक्त करते हैं
कुछ नहीं
बधाई हो
//कोई परिवर्तन हो,कभी आत्म मंथन हो ..
सत्य ह्रदय में जागे ,पुनः हिन्द वंदन हो ..//
प्रत्येक भारतीय के दिल की बात कह दी है आपने, अच्छी रचना आदरणीया लता जी, बधाई हो |
Aabhaar अरुन शर्मा "अनन्त" ji aur सूबे सिंह सुजान ji :)
आदरणीया बेहद मार्मिक प्रस्तुति, समाज में हर दिन बढ़ती बुराइयों का सुन्दर विवरण, हार्दिक बधाई .
aatma manthan jaroor ho.......
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