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मकर संक्रांति पर्व है,बीस तेरहा साल,

संगम घाट प्रयाग का,बजे शंख अरु थाल/

 

शाही सवारी चलती,होती जय जयकार,

चलते साधू संत है, करें अजब श्रृंगार/

 

प्रथम शाही स्नान करे, महाकुम्भ शुरुआत,

साधू संत नहा रहे,क्या दिन अरु क्या रात/

 

भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,

श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/

 

जुटे कोटिशः जन यहाँ,लेकर उर आनंद,

पाय   रहे  प्रसाद सभी, खाएं परमानंद/

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Comment

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Comment by Albela Khatri on January 14, 2013 at 10:25pm

वाह वाह आदरणीय रक्ताले जी 

भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,

श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/

___सादर बधाई

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:08pm

आदरणीय प्रदीप जी एवं आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आप का हार्दिक आभार। प्रदीप जी ने दोहा स्वरुप में प्रतिक्रिया देने का प्रयास किया है वह उत्साहित करता है।पुनः आभार।

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:04pm

आदरणीय बागी जी सादर प्रणाम, प्रातः ही याद आया आज इलाहाबाद में कुम्भ का पहला शाही स्नान है शीघ्रता में दोहे लिखे कुछ जगह चुक हुई जिसे आपने सुधार कर एक सुन्दर दोहा बनाया इस बीच मेरे मन के भावों ने एक अन्य प्रकार का सुधार कर लिया था मैंने उसे जोड़कर छंद पुनः प्रस्तुत किये हैं। आपका जो सहयोग मिला मै  उसके लिए आभारी हूँ।

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2013 at 5:30pm

बहुत खूब आदरणीय रक्ताले साहब !

बधाई इस प्रस्तुति पर ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 14, 2013 at 11:46am

आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन 

सुन्दर प्रस्तुति आपकी सुन्दर है चित्रण 

लेखन सफल आपका महा कुम्भ वर्णन 

बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 11:34am

बहुत खूब आदरणीय रक्ताले साहब, इन दोहों के माध्यम से आपने महाकुम्भ का एक शब्द चित्र खीच दिया है , बहुत सुन्दर ।

अंतिम दोहा कुछ और समय मांग रहा, जिससे कथ्य और प्रवाह और खुबसूरत हो सके .....यदि यूँ कहे तो ...

कोटि कोटि जन जुट रहे,मन में है आनंद,
मिलता है प्रसाद यहाँ, पायें परमानंद/

बधाई इस प्रस्तुति पर ।

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