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ग़ज़ल - प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है

(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)

वज्न : 2122, 1122, 1122, 22

चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,

प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,

फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,

चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,

धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,

बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,

कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,

शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,

मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,

मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 4:51pm

आदरणीय उपासना जी आपको ग़ज़ल पसंद आई सराहना हेतु धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 4:49pm

मित्रवर संदीप जी आपका अपनापन और स्नेह लिखने को उत्साहित करता है, यूँही साथ बनाये रखें सादर

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 4:41pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल , श्रृंगार  रस से भरपूर ..........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 3:54pm

क्या बात है अनंत भाई जी बहुत खूब
इक दम अल्हड सी ग़ज़ल वाह

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 3:27pm

आदरणीय झा सर आपको रचना पसंद आई आभार. सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:45pm

बढि़या प्रस्‍तुति है, अपनी बीस साल वाली उमर की याद आ गई, सादर

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