शब्द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।
Comment
एक पुरूस्कृत रचना पर आगे कहने को कुछ नहीं रह जाता सिवा उसे पढ़ने और आनन्द उठाने के। मन मोहक! अप्रतिम! बधाई!
संकेतों से बहुत कुछ कह जाने से आगे की रचना इस गठन और गुम्फन के लिए हार्दिक बधाई कबूलें राजेश जी !
v.nice.
बहुत खूबसूरत रचना |बधाई |
मैं बेसुध सा
अपना सबकुछ
तुम्हारे आंगन रख आता हूं,
कितने ही मर्मभेदी हथौड़े
मुझे पेशगी में
कुछ कीलें दे जाते हैं ।
आदरणीय राजेश जी
सादर
बधाई
आदरणीय राजेश जी,
आपकी इस सुन्दर कविता का मैंने रसास्वादन किया था,
पर खेद है कि न जाने कैसे प्रतिक्रिया लिखनी रह गई।
आपको मेरी ओर से ढेर बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय श्री राजेश जी आप की इस रचना को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किये जाने पर हार्दिक बधाई...आप की ये साहित्यिक यात्रा यों ही अनंत की तरफ अग्रसारित होती रहे शुभ कामनाएं
वो तुम्हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,.....सुन्दर भाव अनोखा रूप
कविता विचारों को शब्दरूप देने का अभिनव माध्यम है. भावनाओं और विचारों की प्रतीति भौतिक रूप से होने लगे तो उनकी सान्द्रता और आवृति चकित होने का कारण होती हैं. कवि इस रचना में सूक्ष्म और स्थूल के मध्य होते अंतःपरिवर्तन को बखूबी प्रस्तुत करता है. यह आत्मनिष्ठा और आत्ममुग्धता का एक प्रतिरूप अवश्य हो, भावानुभूति का चरम भी होता है. कवि के संदर्भ से यह भावानुभूति ही प्रतीत होती है. तभी वह ’होम करते हाथ जले’ के चिंतन के साथ उपस्थित होता है.
आदरणीय राजेश झाजी, इस विशिष्ट रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई.
बहुत ही सुन्दर भाव सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छू गयी, बहुत बहुत बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा जी
आदरणीय योगी सारश्वत जी एवं सुमन मिश्रा जी, रचना का संज्ञान लेने और हमारा मान बढ़ाने के लिए आभारी हूं
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