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आओ दिल का दीया जला लो

सद्भावों की थोड़ी खूशबू

सरगम की आवाज बची है

आओ दिल का दीया जला लो

मुट्ठी में थोड़ी राख बची है

नई उमर के गर्म खून से

उठी हुई कुछ भाप बची है

श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से

बचपन की एक शाख बची है

आओ दिल का.................

तेरी आरजू मेरी शिकायत

की मीठी तकरार बची है

जग से जाने के कुछ लम्‍हें

जीवन की सौगात बची है

आओ दिल का.................

घुटी व्‍यथा जो तुझमें,मुझमें

उसकी कुछ आवाज बची है

भींगे मन के कुछ पन्‍नों पर

यादों की झनकार बची है

आओ दिल का.................

कहो अलविदा तुम ना ऐसे

अभी तो थोड़ी दाद बची है

उमस धूल और सिहरन में भी

आशा की कुछ गाद बची है

आओ दिल का.................

राजेश कुमार झा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 565

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 11:13pm

राजेशभाईजी, मैं अभी आपकी यह रचना देख पा रहा हूँ, खेद है. और जिस स्तर पर मैं आपके शब्द, उनके भावों को रख पा रहा हूँ आपकी रचना खूब सहयोग कर रही है. इसके लिए आप वस्तुतः अतिशय बधाई के पात्र हैं.

अबतक की प्रस्तुत रचनाओं को देख कर मैं यह दावे कह सकता हूँ कि गेयता और प्रवाह आपकी रचनाओं का महत्वपूर्ण विन्दु होने चाहिये. आप इसे निभाने का प्रयास भी करते हैं. लेकिन जाने क्यों प्रस्तुत रचना की पंक्तियाँ १६-१७-१८ की मात्राओं के बीच दोलन करती दिख रही है. 

फिर दृष्टि पड़ी डॉ.प्राची के सुझावों पर और मैं वस्तुतः उनके कहे में अपने सुझावों का अक्स देख पा रहा हूँ. सीमाजी ने भी इन तथ्यों की ओर स्पष्टतः इंगित किया है. विश्वास है, आप साझा किये गये सुझावों को अपनी बेहतरी के लिहाज से स्वीकार कर तदनुरूप प्रयासरत होंगे.

शुभेच्छाएँ.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 4:41pm

वाह क्या बात कही है बंधुवर मैं सहमत हूँ आपसे.

Comment by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 4:40pm

अरूण जी यही तो इस मंच की विशेषता है जहां आपको चलना ना भी आए तो भी ऊंगली पकड़कर चलना ही नहीं दौड़ना सिखा देते हैं और हर स्‍पर्श इतना स्‍नेहिल कि आप भागना चाहें तो आपका स्‍वयं का मन विद्रोह कर बैठता है । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2013 at 4:36pm

राजेश भाई बहुत ही सुन्दर गीत है, पढ़ने में आनंद आ गया, आदरणीया प्राची दीदी के सुझाव के अनुसार पढ़ने में गेयता एवं प्रवाह बहुत ही सुन्दर लगा. हार्दिक बधाई स्वीकारें सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2013 at 3:49pm

इस नवगीत पर मेरे सुझाव का समसरोकार रख अनुमोदन करने के लिए आभारी हूँ आदरणीया सीमा जी , आदरणीय गणेश जी. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2013 at 3:46pm

मेरे कहे को मान देने के लिए सादर आभार आ. राजेश झा जी.

Comment by Prabhakar Pandey on January 29, 2013 at 5:10pm

बहुत ही सुंदर, सहज और यथार्थ रचना हेतु हार्दिक बधाई।

Comment by राजेश 'मृदु' on January 29, 2013 at 4:46pm

आप सबके स्‍नेह के लिए हृदय से आभारी हूं ।  प्राची जी, आपने जो सुझाव दिया है उनसे मुझे मेरे अकादमिक गुरुदेव की याद आ गई वे भी मेरे नोट्स को इसी तरह पंक्ति दर पंक्ति पढ़ कर सुझाव देते थे । आपके सुझावों के लिए आपका बेहद शुक्रगुजार हूं कि इतने धैर्य के साथ आपने रचना पढ़ी एवं आवश्‍यक सुधारों की ओर ध्‍यान खींचा । मैं मूल रचना में आपके समस्‍त सुझावों को ज्‍यों का त्‍यों रख रहा हूं, सादर

Comment by seema agrawal on January 27, 2013 at 12:12pm

बहुत खूबसूरत गीत राजेश जी ...भावों और कल्पना,और शब्द चयन  की दृष्टि से निसंदेह आप की लेखन क्षमता बहुत उच्चस्तरीय है ...परन्तु भावनाओं में गति की लडखडाहट नहीं होनी चाहिए  प्राची ने  बहुत कुछ स्पष्ट किया है और बेहद सटीक और उपयुक्त सुझाव भी दिए हैं ........जिसके लिए प्राची भी  प्रशंसा की हक़दार हैं 

गीत के लिए आपको बधाई एवं शुभकामनाएँ 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2013 at 3:06pm

सुन्दर नवगीत बना है , बधाई आदरणीय राजेश जी , डॉ प्राची जी ने बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिया है ।

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