जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||
तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||
नज़र किसकी लगी होगी हमारे प्रेम-मंदिर को
ज़माने के कहे तुमने सभी उपवास रक्खे हैं
मिलन की चाहतें बस थीं, हमारी प्रार्थनाओं में
मगर रब ने हमारे वास्ते वनवास रक्खे हैं||
चलो छोडो किसे अब दोष का भागी बनाऊँ मै
अकेला हूँ नहीं जिसने जुदाई की सजा पाई
कई किस्से सुने थे पर कभी सोचा नहीं था ये
इधर होगा कुआ अपने लिए, होगी उधर खाई||
अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||
चलो अब ये कलम भी आसुओं का हाल ना लिख दे
दिलासों का बनाया घर खड़ा ज्यादा नहीं रहता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||...........मनोज
Comment
मनोज जी, इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद!
अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना || ...वाह...वाह...वाह!
विजय निकोर
हृदय स्पर्शी रचना,किसी के प्यार में असफल होकर मन कि सम्वेद्नओ को बड़ी खूबसूरती से कविता कि लड़ियों में पिरोया है वाह बहुत बहुत बढ़ाई आपको मनोज जी
ह्रदय को छूती वेदना भरी अभ्व्यक्ति सुन्दर बन पड़ी है, बधाई मनोज नोटियाल भाई
बहुत सुन्दर रचना ... बधाई
बहुत बहुत आभार आपका प्राची सिंह जी , अरुण शर्मा जी , अशोककुमार जी , एवं आरती शर्मा जी |
जिस दर्द, विवशता और जुदाई की मनोदशा का चित्रण इस रचना में है, वह संवेदना ह्रदय को छू रही है.
इस मर्मस्पर्शी भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई मनोज नौटियाल जी
मनोज से प्रेम रस से ओतप्रोत बहुत ही सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जुदाई के आंसू और गम का फ़साना. सुन्दर रचना आद. मनोज जी
हमारा प्यार चाहे मिलन की मंजिल नहीं पाया
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||
बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना..बधाई.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online