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मैंम आप जो भी लिखती है बहुत अच्छा लिखती है..आपकी रचना बहुत पसंद आई ..बधाई स्वीकारें
आदरणीय सौरभ जी, उच्चारण दोष तुलनात्मकता द्वारा स्पष्ट करने के लिए आभार.
चरण मन बनकर रसधर गाइये .. और देखिये. कोई दिक्कत नहीं होगी.
शब्द समुच्चय वाष्प पंख में वाष्प के प पर बलाघात समाप्त नहीं होता कि पंख के पंख का बलाघात आ जाता है. इस तरह का हुआ बलाघात में अचानक का परिवर्तन छंद प्रवाह झेल नहीं पाता.
सादर
क्या "मन बनकर रसधर"में भी उच्चारण दोष होगा आदरणीय ?
आदरणीय सौरभ जी,
वाष्प पंख से जो वाष्प का विशेषण ( उड़ता हुआ, उठता हुआ, घुलता हुआ ) रूप उद्दृत हो रहा था, उसी पर मन मुग्ध था लिखते हुए,
पर वाष्प पंख में दो प एक साथ आने पर उच्चारण दोष बन रहा है, जिसे आपने इंगित किया है
अब वाष्प के पर्यायवाची ...भाप., में भी प है....... अब और कोइ मुझे अभी याद नहीं आ रहा.
प्रखर शब्द से भाव तो बदल रहा है, पर यह भी पूरी रचना को समुच्चय में देखते हुए, यहाँ प्रयुक्त किया जा सकता है, ( आखिर प्रेम की प्रखरता ही तो पंखों को अम्बर माप सकें, ऐसी की उड़ान देती है).
सादर.
हार्दिक आभार रचना की सराहना के लिए आदरणीय गणेश जी .
हाहाहा आदरणीय,
मन को लकी शब्द बना दिया मेरी रचनाओं के लिए..
वैसे हर रचनाकार की मन से लिखी गयी हर रचना अलग ही होती है!
प्रखर शब्द यदि आपके भाव को सही संप्रेषित कर पा रहे हैं तो यह एक उचित शब्द है. पंख प्रखर धर .. वाह ! ... लेकिन वाष्प पंख सटीक क्यों नहीं बन पा रहा है यह जानना भी रोचक होगा. कुछ साझा कीजये न, आदरणीया..
आदरणीया डॉ साहिबा, अपेक्षाकृत कठिन छंद त्रिभंगी पर आपका प्रयास काबिले तारीफ़ है, रचना अच्छी बन पड़ी है, वैसे भी आपकी जिस रचना में "मन" आता है वो रचना हिट हो जाती है, जैसे ....रे मन ..... :-)
बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत छंदमय अभिव्यक्ति पर |
रचना के अनुमोदन के लिए आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
इस रचना के साथ साथ आपका मन झूम उठा यह जान कर प्रसन्न हूँ, सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी. सादर.
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