मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी ये सब और वो दो बांहों के घेरे में समा गई और पटाक्षेप हो गया । ,सुरभि लगातार आँखों से आंसू पोंछ रही थी की पीछे से आवाज आई कितनी बार कहा सुभी ये ऊट पटांग सीरियल मत देखो फिर रोती रहती हो और भी तो कुछ कर सकती हो मन बहलाने के लिए ,देखो आज मेरी मीटिंग है देर से लौटूंगा अपना और रोहित का ख्याल रखना ,सुरभि ने कहा "ठीक है" और सब कुछ शांत हो गया |इतने में किसी ने हिलाया तो जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो सुना, क्या ठीक है? माँ कहाँ खो गई ?कब से कह रहा हूँ ये सास बहु के सीरियल देख कर अपना दिमाग ख़राब मत किया करो आप क्या सोच रही थी ,देखो आज आफिस के बाद मेरे एक फ्रेंड की वेडिंग एनिव्र्सरी है श्रुति भी स्कूल के बाद मुझे ऑफिस में मिल जायेगी पार्टी में देर हो सकती है गौरव स्कूल से आये तो बता देना ,सुरभि "ठीक है" कह कर कुछ देर तक सोचती रही और न जाने कब आँख लग गई तीन बजे गौरव स्कूल से आया बैग एक साइड पटक कर बोला दादी मैं पार्क में खेलने जा रहा हूँ ज्यादा टीवी मत देखना आप फिर रोती हो ,सुरभि बोली "ठीक है "एक बार फिर वो अतीत की धुंध में गुम हो गई।
कुछ देर बाद आँखें खोली तो सामने लक्ष्मी (काम वाली) को खड़ा पाया वो कह रही थी माजी आप ठीक तो हैं ,दरवाजा भी खुल पड़ा है बाबा कहाँ है सुरभि ने कहा ठीक हूँ बाबा खेलने गया है ।लक्ष्मी किचेन में चली गई तो उसने पास में बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी जो महज छ या सात साल की होगी को कोई भी सी डी लगाने को बोला ,सी डी प्ले होने लगी उसे देखकर एक बार फिर सुरभि अतीत की सीढियां उतर रही है रोहित ढाई तीन साल का है सामने लान में भागते हुए गिर पड़ा सुरभि उसकी चीख सुनकर दौड़ पड़ी साडी पैर के नीचे फंसी और वो धडाम से गिरी |
उसे क्या पता था वो दौड़ उसके जीवन की अंतिम दौड़ थी ,पास बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी ने सुरभि को आँखें पोंछते देखा तो तुरंत खड़ी हो गई बोली "दादी मत देखो", आप दुखी होती हो शायद आपका मन नहीं लग रहा चलो मैं आपको बाहर घुमा के लाती हूँ और वो नन्ही बच्ची व्हील चेयर को धकेलती हुई बाहर लान में ले गई मौसम बहुत सुहाना था वो अचानक ख़ुशी से उछलती हुई बोली दादी देखो इंद्र धनुष निकला है आसमान में ,सुरभि ने गर्दन उठाकर देखा तो एक मुस्कान उसके अधरों पर लौट आई सोचने लगी देखो आज उसका एक रंग जो वो कब से मांगती थी जमीन पर उतर कर उसकी व्हील चेयर पकडे खड़ा है ।
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कहानी पढ़ के आँखे नम हुए बिना नही रह पाईं.. दिल को छूती हुई कहानी .. हार्दिक बधाई
प्रिय प्राची आपको कहानी पसंद आई इसके लिए हार्दिक आभार एक अपाहिज औरत जिंदगी के तीन स्टेज से होकर गुजर रही है सिर्फ़ एक चटक रंग कि तलाश में पर वो अपनों में नही दूसरों में मिलता है यही इस कहानी के माध्यम से दर्शाने का प्रयत्न किया है
सुन्दर कहानी आदरणीया राजेश जी,
मुझ तो कड़ियाँ सुलझाते सुलझाते दो -तीन बार पढने के बाद पूरी समझ आयी..
उसे क्या पता था वो दौड़ उसके जीवन की अंतिम दौड़ थी..और पैर खो देने का दर्द ..मर्मस्पर्शी कहानी है .
हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार राम शिरोमणि जी
बहुत बहुत बधाई आदरणीया!!!!!!!!!
प्रिय संदीप कहानी के मर्म ने आपके दिल पर दस्तक दी मेरा लेखन सफल हुआ और क्या चाहिए दिल से आभार शुभ कामनाये
बेहतरीन रचना पढ़ कर भाव विभोर हो उठा ,,,,,,,,,,,,,बहुत बहुत बधाई हो आपको
आप तो सीधे मर्म को छूती हैं आदरणीया ये अनुभव का कार्य है निःसंदेह
आँखें भर आती है वाणी भर्रा जाती है इस तरह पढ़ कर
आदरणीय विजय निकोर जी आपको कहानी पसंद आई लेखन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
एक शब्द "ठीक" में कितना-कुछ छिपा होता है।
इस मार्मिक कहानी के लिए ढेर साधुवाद!
सादर,
विजय निकोर
हार्दिक आभार रविकर भाइ इस सुंदर छंदात्मक प्रतिक्रिया हेतु
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