For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

आँख को अब ये नींदें सताने लगीं

चाह कोई गगन की जगा दो प्रिये

 

फिर बनो लक्ष्य मेरा पुकारो मुझे

भर के मुझमें उमंगें संवारो मुझे

मैं नदी बनके दौड़ा चला आऊं फिर

बनके सागर जरा तुम पुकारो मुझे

ऐसे ठहरा हुआ कैसे जी पाऊंगा

कोई चाँद फिर तुम मँगा लो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

 

 

मुझमें भर दो अगन यज्ञ हो जाऊँगा

तुम बनो प्रेरणा पथ बना लाऊंगा

तुम कुसुम बन के कोई निमंत्रण तो दो

मैं भ्रमर का सा निश्चय भी ले आऊंगा

बस तुम्हारे लिए जो थी मुझमें कभी

वही आग फिर अब लगा दो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

  -पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 9:07pm

उपासना दीदी.. बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 9:06pm

आशीष जी, विजय सर ..आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 7:38pm

राजेश दीदी, प्राची दीदी छोटे भाई की ओर से सादर प्रणाम स्वीकार कीजिये

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 7:32pm

सौरभ सर आपको प्रणाम करता हूँ आशीष बनाये रखिये

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 7:31pm

संदीप भाई जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by upasna siag on February 14, 2013 at 6:35pm

बहुत सुन्दर ........

Comment by vijay nikore on February 14, 2013 at 9:29am

फिर बनो लक्ष्य मेरा पुकारो मुझे

भर के मुझमें उमंगें संवारो मुझे

मैं नदी बनके दौड़ा चला आऊं फिर

बनके सागर जरा तुम पुकारो मुझे

 

अनोखी अभिव्यक्ति के लिए ढेर बधाई।

विजय निकोर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 13, 2013 at 11:25pm

सुन्दर रचना...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2013 at 8:26pm

प्रिय अनुज पुश्यमित्र उपाध्याय जी,

क्या अद्भुत लेखन है आपका, भाव जैसे ह्रदय की गहराई से बहे जा रहे हैं, बहे जा रहे हैं.. और क्या ही सुन्दर भाव हैं, हर अक्षर जैसे मोती.

बहुत बहुत बधाई इस अनमोल लेखन के लिए.

शुभेच्छाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2013 at 7:11pm

सुंदर दिल की गहराइयों से निकले भाव सुंदर रचना हेतु बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service