छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे
कब तक आस लगाओगी तुम,
बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से|
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे
कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
seema didi, jawahar sir, laxman sir....saadar aap sabhi ka,....aashish bnaaye rakhiye :)
समयानुकूल अभिब्यक्ति!
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयंगे.......बहुत सटीक और सच्ची बात लिखी पुष्य मित्र आपने
वस्तुस्थिति को रेखांकित करती इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाई
कल तक केवल अँधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है
होठ सी दिए हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे
prachi didi, ajay sir, vijay sir....aapko saadar abhar preshit karta hoon...anuj ka pranaam sweekar kijiye
इस सुन्दर रचना के लिए साधुवाद।
विजय निकोर
शर्म ओ हया के सर पे दुपट्टे भी क्या करें
छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे i must say best of posts i have recently read ,,,,,bhai ji hardik badhayiiiiiiiiiiiiiiiiiiii
वाह! बहुत सुन्दर भाव, कथ्य, प्रवाह.
क्रांति का बिगुल बजाती एक सुन्दर समसामयिक रचना.
हर पंक्ति पर हार्दिक बधाई स्वीकारे भाई पुष्यमित्र उपाध्याय जी
ashok sir, verma sir, saadar abhar preshit krta hu..sweekar kijiye
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