जब से मजबूरी मेरी बढ़ने लगी
दोस्तों से दूरी भी बनने लगी
उनकी हाँ में हाँ मिलाया जब नहीं
बस मेरी मौजूदगी डसने लगी
कद मेरा उस वक्त से बढ़ने लगा
आजमाइस दुनिया जब करने लगी
भा गई फिर सब्र की तौफीक भी
ज़ुल्म की शिद्दत भी जब बढ़ने लगी
दूर मुझसे आप जब से हो गए
ज़िंदगी से हर खुशी झड़ने लगी
तेरी हर तकलीफ से वाकिफ़ हूँ मै
बस तेरी चुप्पी मुझे खलने लगी
Comment
आदरणीय, अशोक जी एवं अजय जी हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया ....
दूर मुझसे आप जब से हो गए
ज़िंदगी से हर खुशी झड़ने लगी......बहुत खूबसूरत शेर |बधाई |
आदरणीय नादिर खान साहब सादर, सुन्दर गजल बधाई स्वीकारें.
आरती जी बहुत शुक्रिया
कोशिश को सराहा आपने...
प्रणाम नादिर सर ..बेहद सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें..
सभी आदरणीय,
विजय निकोर जी, डॉ प्राची जी, विजय मिश्र जी, डॉ. अजय खरे जी, राजेश कुमारी जी, संदीप पटेल जी, मीना पाठक जी एवं लक्ष्मण प्रसाद जी आप सबका स्नेह मिला। आपने हमारी छोटी सी कोशिश को सराहा इसके लिए मै आप सभी का शुक्र गुजार हूँ ।
आप सभी का बहुत आभार आपने मेरा हौसला बढ़ाया ......
सच्चाई बयां की है आपने सुंदर गजल के माध्यम से, हार्दिक बधाई श्री नादिर खान भाई
बेहतरीन गज़ल नादिर जी .... बधाई
वाह वाह
सुंदर गजल क्या ही खूबसूरत अश्आर बने हैं
सब्र की तौफीक फिर अच्छी लगी
ज़ुल्म की शिद्दत भी जब बढ़ने लगी
वाह दाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय
सुंदर ग़ज़ल लिखी है नादिर जी बधाई आपको
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