मैं महसूस करता हूँ
जब भी
अंदर तक बिखरा
तुम्हारे कदमों की आहट
फिर से समेट देती है
मेरा अंर्तमन
चेतनशून्य से
चैतन्यता लौट आती है
मेरे पास
तुम्हारा मुस्कराता चेहरा
मेरी आंखों के सामने होता है
- बृजेश नीरज
Comment
मेरे बिखरे वजूद के टुकड़ों को समेटने के लिए तेरी याद ही काफ़ी है
बहुत उम्दा भावों को समेटा है चंद पंक्तियों में बधाई आपको
आ० ब्रजेश जी:
थोड़े-से शब्दों में बहुत कह दिया है।
बधाई।
विजय निकोर
brijesh ji rachana sunder ban padi hai badhai
बहुत सुन्दर भाव आ. ब्रजेश जी. बधाई स्वीकारें
जब भी
अंदर तक बिखरा
तुम्हारे कदमों की आहट
फिर से समेट देती है
मेरा अंर्तमन
चेतनशून्य से
चैतन्यता लौट आती है....
क्या बात है ब्रजेश जी बहुत उम्दा फीलिंग्स....
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