एक मित्र ने पूछा, "तुम कब पैदा हुए थे ?"
"शायद तब जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, नहीं शायद गुलजारी लाल नन्दा या इंदिरा में से कोई प्रधानमंत्री था," मैंने उत्तर दिया।
"तुम्हें इतना भी याद नहीं।"
"बच्चा था न- दुनियादारी, राजनीति, से दूर।"
"अब क्या हो?"
"अब भी एक इंसान हूं-छल, कपट, राजनीति, माया-मोह में जकड़ा।"
"मगर इंसान हो ?"
"हां।"
"पर कैसे ? इंसानों के कौन से लक्षण हैं तुममें ?"
मैं चुप रहा, कुछ सोचा फिर उत्तर की जगह मैंने एक प्रश्न दाग दिया, "तुम क्या हो ?"
मित्र खामोश था । वह शायद जानता था कि आगे फिर मैं उसका अगला प्रश्न ही दोहराने वाला हूँ ।
एक सीधे प्रश्न के उत्तर की तलाश में हम देर तक एक दूसरे को देखते रहें |
आज भी उत्तर तलाश रहे हैं कि इंसानों के कौन से लक्षण हैं हममें ?
- बृजेश नीरज
Comment
Pawan Amba ji, Thanks for appreciation!
सतवीर जी, आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!
sach kahi......bahut sundar likha ....aapne
Shubhranshu Pandey ji आपका आभार!
जो दिल ढ़ूढा आपनो मुझसे बुरा ना कोय...
एक सशक्त कहानी..
बधाई
आदरणीय सौरभ जी
आपका बहुत आभार! आपको रचना पसन्द आयी लेखन सार्थक हुआ।
सादर!
एक अच्छी और सांकेतिक लघुकथा के लिए बधाई.. .
संदीप जी आपका बहुत धन्यवाद!
एक दम सच से सामना कराता है ये प्रश्न देखने सुनने में बड़ा सहज और सरल हो सकता है किन्तु इसका उत्तर बहुत ही जटिल .........बधाई हो आदरणीय
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