यदि अंकुश हो क्रोध पर, सहनशीलता पास !
वहां पाप होता नहीं, हो खुशियों का वास !!
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गुरुजन की सेवा करो, रहो बढ़ाते ज्ञान !
यदि करना जीवन सफल, दो इनको सम्मान !!
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धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,
कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!
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लोगों में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !
कलह क्लेश ना फिर वहां, हो प्रसन्न परिवार !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर अपने कहा था प्रयास करो ,नियम पड़ो,जितना ज्यादा हो सके लोगों की रचनाएँ पड़ो तो मै वही कर रहा हूँ ! अपने जो अमूल्य सुझाव दिए है मै उसपे निरंतर प्रयासरत रहूँगा ! अप जैसे गुरुजनों को पाकर मै धन्य हो गया!!
प्रणाम सहित हार्दिक आभार !!!!!!!!!!!!
हतप्रभ हूँ !
भाई रामशिरोमणि, आपकी इस प्रस्तुति पर सुखद और गर्वभरी अनुभूति हो रही है ! भाव, कथ्य, तथ्य, शिल्प और संप्रेषणीयता के लिहाज से आपके दोहे आश्वस्त कर रहे हैं, कि आपका प्रयास संयत तथा सही दिशा की ओर है.
एकाध स्थान को छोड़ दिया जाय तो आपके दोहे निर्दोष हैं, या वो दोष भी नगण्य़ ही हैं.
इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
यह सही है, कि हर छंद के विधान के कुछ अत्यंत आवश्यक मानक हुआ करते हैं. इन्हीं आधारभूत मानकों के आधार पर ही कोई छंद अपने नाम या अपनी संज्ञा को संतुष्ट करता है. अन्यथा, अपनी संज्ञा हेतु आधारभूत विन्दुओं तक से खारिज छंद कुछ और भले कहलायें, उक्त विशिष्ट छंद नहीं माने जा सकते.
हरिपद, दोही, गीता, शुद्धगीता, सरसी, रूपमाला (मदन) आदि जैसे छंदों का पदांत (सम चरण का अंत) गुरु लघु (ऽ।) से ही होता है, ठीक दोहा की तरह ! लेकिन इन सभी में मूल अंतर विषम-सम चरण की मात्राओं और उनके विषम चरण के गुरु लघु के विन्यास के कारण होता है. थोड़े से मात्रिक और विन्यासजन्य हेरफेर से एक दोहा छंद रचना, दोही छद रचना या रूपमाला छंद रचना हो जाती है. फिरतो, हमें मानना होगा कि ऐसे में मात्रिकता और गुरु-लघु के विन्यास का छंदों में विषेश महत्व है.
उसी तरह से मज़ा देखिये, कि बरवै छंद और मोहिनी छंद में अंतर मात्र उनके सम चरण के अंत में प्रयुक्त गण का अंतर भर है. यानि सम चरण का अंत बदला नहीं कि बरवै छंद मोहिनी छंद हुआ !
वहीं, इन्हीं दोनों छंदों के सम चरण की मात्रा ७ से ९ हुई नहीं कि उस छंद का नाम अतिबरवै हो जाता है.
मैंने आपको उपरोक्त बातें इसलिये कहीं कि आप अभी सीखने की प्रारंभिक अवस्था में हैं. अपनी कोशिशों को किसी अन्यथा प्रयोग से बचाइयेगा. छंद के आधारभूत नियमों का पालन ठीक वैसे ही है जैसे अपने व्यक्तित्व के आधारभूत रूप की प्रतिष्ठा को बचाना. यह व्यक्तित्व बचाव कभी भी अहंकार पोषण नहीं कहलाता.
आप सतत प्रयासरत रहें और एकनिष्ठ अभ्यास करते रहें. शुभ-शुभ
धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,
कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!
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लोगों में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !
कलह क्लेश ना फिर वहां, हो प्रसन्न परिवार !!
sundar shabd
बेहतरीन दोहे रचे हैं आपने आदरणीय राम शिरोमणि जी .......सादर बधाई आपको
वाह पाठक जी बड़ी नेक सलाह छिपी है इस रचना में गाँठ बाँध लिया है \ साधुवाद इस सफल प्रस्तुति के लिए !!
राम शिरोमणि जी बहुत सुंदर सार्थक दोहे रचे हैं नियमों को पूर्णतः संतुष्ट कर रहे हैं बहुत बहुत बधाई|
आदरणीया मंज़री मैम हार्दिक आभार !!!!!!!!!!!!
आदरणीय लक्ष्मन सर उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार !!!!!!!!!!!!
उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार भाई अरुन शर्मा "अनन्त" जी।
मित्रवर दोहे हेतु आपके प्रयास एवं लग्न हेतु हार्दिक बधाई जहाँ बात दोहे की है तो भाई मुझे बहुत पसंद आये.
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