कभी चाह थी बहुत दिल मे
कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ
मिट्टी,हवा,पानी इन सब को
पीछे छोड़ शून्य को
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी
फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के
खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली
सी, ना चाह रही जीने की ना ललक
कुछ करने की ...........................
बिखरी हुई सी ज़िंदगी,पन्ना-दर-पन्ना
पलती गई यूँ ही, ज़िंदगी रेत की तरह
हाथ से फिसलती गई
जाग उठी है अब फिर से वही पुरानी
चाह जीने की,ललक कुछ करने की
जिंदगी की खूबसूरत किताब को
तमन्ना प्यार से पढ़ने की
मिट्टी,हवा,पानी सब को पीछे छोड़ हाथ
बढ़ा कर शून्य को छूने की , शायद ये
तुमसे मिलने का असर है मुझ पर ||
(मौलिक /अप्रकाशित)
*चित्र - साभार गूगल
Comment
बहुत खूब आदरेया-
शुभकामनायें-
सादर आभार राजेन्द्र सिंह कुँवर जी
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना सराहने के लिए सादर आभार
उम्दा अभिव्यक्ति जिंदगी के हर मोड़ को आप के शव्दों ने बखूवी से सिंचा है बेहतरीन पंक्तियां ....जाग उठी है अब फिर से वही पुरानी
चाह जीने की,ललक कुछ करने की
जिंदगी की खूबसूरत किताब को
तमन्ना प्यार से पढ़ने की
संवेदना का बहाव .. . बहुत सुन्दर रचना .. .
हार्दिक बधाई.. .
जी ... बहुत बहुत हार्दिक आभार प्रिय प्राची जी रचना सराहने के लिए
रचना पसन्द करने के लिए सादर आभार पाठक जी और जो पंक्तियाँ विशेष पसन्द आयीं उसके लिए भी दिली आभार स्वीकार करें
साराहने के लिए हार्दिक आभार आ. सतवीर वर्मा जी
मर्मस्पर्शी रचना..
कैसे किसी का साथ निराश से मृतप्राय मन में ज़िंदगी की किरणे बिखेर देता है..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हर चाह को फिर से भरपूर जी लेने की..
हार्दिक बधाई
आदरणीया मीना जी बहोत ही बढ़िया अभिव्यक्ति ..........
ये पंक्तियाँ मुझे कुछ ज्यादा ही पसंद आई..
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online