मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
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.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
पाऊं कान्हा को राधिका बन
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रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
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प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
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फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
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मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
Comment
आदरणीय सौरभ जी ,आपको मेरी रचना पसंद आई,उत्साह्वर्धन हेतु मेरे लिए आपका कमेन्ट ही बहुत अमूल्य था ,नाम से क्या अंतर पड़ता है क्षमा की कोई आवश्यकता ही नही ,आपका हार्दिक आभार
सादर प्रणाम, आदरणीया रेखा जी,
इस भयंकर भूल के लिए हृदय से क्षमा याचना.. .
सादर
वेदिका जी ,ऐसे ही प्रेरणा देते रहिये ,आभार .
आदरणीय जवाहर जी ,ऐसे ही उत्साह बढाते रहिये ,आभार .
आदरणीय सौरभ जी ,मै रेखा हूँ ,आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार
आ सतवीर जी ,आ राज जी ,आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद .
बहुत ही प्यारी रचना ,,, भक्तिमय प्रेममय रचना
शुभकामनायें आदरणीया रेखा जी
सादर
बहुत ही सुन्दर!
इन सरस द्विपदियों के लिए आदरणीया राजेशजी, हार्दिक धन्यवाद.
बहुत ही सुन्दर रचना हेतु बधाई आपको रेखा जी |
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