For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

-------------------------------------

करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा

तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

 

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा

 

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए

कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा

 

बारहा सोच तुझे रब ने क्यूँ बख़्शा है दिमाग 

सिर्फ़ इबादत को तो काफ़ी था गला मान भी जा

 

अंधविश्वास, अशिक्षा और घर घुसरापन

है गरीबी इन्हीं पापों की सजा मान भी जा

-----------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

Views: 621

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 3:36pm

वाह वाह वाह आदरणीय धर्मेन्द्र सर जी वाह
क्या ही सुंदर गजल कही है मत्ले से लेकर मकते तक
इक इक अश्आर शानदार है
हर इक शेर पर दाद क़ुबूल कीजिए सर जी सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 3:32pm

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए

कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा

सर जी बधाई 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 7, 2013 at 1:22pm

आत्मविवेचना और नीतिगत सलाहों से बिदकने वाले इस आत्म-मुग्ध दौर में इस तरह से शेरों को सुनाना ग़ज़लकार के अदम्य मानसिक बल का परिचायक है. नीतिगत तथ्यों को बिम्बगत बना कर सुगढ़ शिल्प के माध्यम से परोसना सच में बहुत भला लगा है.

ग़ज़ल सारे ही शेर संतुष्ट करते हैं. लेकिन अधोलिखित शेर की तो बात ही जुदा है. चचा जहाँ भी होंगे, मुग्ध-मुग्ध सिर हिला रहे होंगे -

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए
कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा.. . 

ग़ज़ब-ग़ज़ब !!

दिल से दाद लीजिये, धर्मेन्द्र भाई.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 7, 2013 at 12:45pm

 बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani pathak साहब

Comment by ram shiromani pathak on March 7, 2013 at 12:03pm

अंधविश्वास, अशिक्षा और घर घुसरापन

है गरीबी इन्हीं पापों की सजा मान भी जा!!!!!!!!!

आदरणीय  धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी ये पंक्तिया कुछ ज्यादा ही पसंद आई ....बहोत खूब 

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 7, 2013 at 9:50am

आपकी नज़र पड़ गई अश’आर सार्थक हो गए। बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:08am

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा

 

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए

कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा

 

बारहा सोच तुझे रब ने क्यूँ बख़्शा है दिमाग 

सिर्फ़ इबादत को तो काफ़ी था गला मान भी जा


वाह भाई ...

एक एक शेअर में आपकी छाप है
ढेरों दाद क़ुबूल करें ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service