For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महाशिवरात्रि पर विशेष : शिव पार्वती विवाह


शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
----------------------------------------------------------------
मत्तगयंद सवैया :-
================
शारद, शॆष, सुरॆश  दिनॆशहुँ,  ईश  कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ  चारहु  बॆद  भगीरथ, गंग  तरंगहिं  जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष माँगउँ, शंभु बरात विवाहु सुनाऊँ ॥
==============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला !!
दै डुम कारि बजै डमरू अरु,   नाद- सु- नाद सुनावत भॊला !!
नाग गरॆ झुलना जसि झूलत,  दै पुचकारि खिलावत भॊला !!
आइ रहॆ गण  दूत सखी सबु,  ताहि बुलाइ बिठावत भॊला !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
नंग  धड़ंग  मतंग भुजंगन,  ढंग बि-ढंगन साजि सँगाती !!
भूत भभूति लटॆ लिपटॆ अरु, नाक कटी चिपटी चिचुआती !!
कान कटॆ अरु हॊंठ फटॆ कछु,  दाँत बतीस चुड़ैल दिखाती !!
लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
मूँक मलूक सलूक नहीं कछु, बॊल रहॆ  बड़-बॊल अधूरा !!
हाँथ कटॆ कछु पाँव कटॆ कछु,आइ गयॆ सजि लंग लँगूरा !!
आँख कढ़ी अरु नाक चढ़ी कछु,धावत चारिहुँ ऒर जँमूरा !!
मारि रहॆ सुटकारि कछू जनि, छानि रहॆ कछु भंग धतूरा !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
बामहिं हाँथ गहॆ डमरू अरु,  दाँहिन माल फिरावत भॊला !!
ताल भरै जब नाम हरी धुन, जॊरहिं जॊर बजावत भॊला !!
दॆखि रहॆ सुर-वृंद सबै छवि, कॊटिन काम लजावत भॊला !!
आज भयॆ जग-नैन सुखी सखि,रूप-अनूप दिखावत भॊला !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
=================
डूँड़ह बैल चढ़ॊ सखि दूलह,  रूप छटा नहिं जाइ बखानी !!
बाघिन खाल बनी पियरी-पट,जूँ-लट जूट-जटा लिपटानी !!
साँपन कै सिर-मौर बँधी अरु,कंगन-कुंडल हैं बिछु रानी !!
धूसरि धू्रि रमाय रहॆ तन,  मॊह रहॆ मन औघड़ - दानी !!
===========================================
सवैया (किरीट)
=================
नाँचत गावत कूँदत फाँदत, खींस निपॊरत भूत भयंकर !!
बैल चढ़ॆ बृषकॆतु हँसैं सखि, पीटत दॊनहुं  हाँथ दिगंबर !!
दॆख हँसैं नरनारि बरातहिं,बालक मारि भगैं कछु कंकर !!
नाग-गलॆ सिर-चंद-छ्टा सखि,दूलह आजु बनॆ शिवशंकर !!
=============================================
मत्तगयंद सवैया :-
================
बॆद व्रती सबु जॊग-जती सबु,पाहुन आजु बनॆ शिव संगा !!
गाय रहॆ धुनि राम हरी गुन, मंगल गान चुनॆ चित चंगा !!
बाँच रहॆ कछु पॊथि लियॆ अरु,कॊबिद गावत गीत-अभंगा !!
छाइ रही नभ चंद छटा छवि, नाचि रहॆ उड़ि कीट पतंगा !!
============================================
मत्तगयंद सवैया :-
================
तीनहुँ लॊक हुलास भरॆ अरु, दॆखि रही धरनी शिव शादी !!
शीश झुकाय करॆ शिव वंदन, भाँषि रही जय दॆव अनादी !!
सौरभ डारि रहॆ मग माँझहिं, हाँथ लियॆ गणिका सनकादी !!
नारद पीट  रहॆ  ढ़प  झाँझर, धूम  मचावत  प्रॆत गणादी !!
============================================
सवैया (दुर्मिल)
===============
बहु भाँति बरात सजी सँवरी,किलकाति चली तितरी-बितरी !!
नहिं सूझ रही  कछु बूझ रही, बस गूँज रही तुरही  तुतरी !!
अति धूलि उड़ै जब चंग चढ़ै,तब लागत व्यॊम भयॊ छतरी !!
उतिराइ रहीं उलका नभ मां, जस आतिशबाजि हरै चित री !!
============================================
सुन्दरी सवैया =
=================
सखि तीनहुँ  लॊक हुलास भरॆ, चित चॆत अचॆतन कॆ जग जाहीं !!
नहिं दीख परै कछु भॆद वहाँ,सखि दीन कुलीन न जाति मनाहीं !!
खिखियाइ रहॆ  कछु गाइ रहॆ, कछु दाँत दिखाय बड़ॆ  बतियाहीं !!
पछियाइ रहॆ  कछु धाइ  रहॆ, समुहाइ  रहॆ कछु  मारग  माहीं !!
================================================
किरीट सवैया =
==========
नाँचि रहॆ कछु गाइ रहॆ कछु, पीट रहॆ कछु पॆट थपा-थप !!
भाग रहॆ कछु कूँद रहॆ कछु, ऊँघ रहॆ कछु नैन झपा-झप !!
फूट रहॆ कछु छाँड़ि बरातहिं, सूँट रहॆ कछु भाँग सपा-सप !!
लॊग खड़ॆ जिवनार लियॆ मग,खाइ रहॆ कछु भॊज गपा-गप !!
================================================

सवैया (मत्तगयंद)
================
ताकत-झाँकत नाचत गावत, लाँघत-भागत भूत-सवारी !!
झूमत घूमत हूकत कूकत,  फूँकत शंख उठै धुत  कारी !!
दॆव कहैं बिहराइ चलॊ सब,  आपन  आपन सॆन सँवारी !!
नाक कटै सबहीं कइ जानहु, दॆखत लॊग हँसैं दइ तारी !!
============================================

सवैया (मत्तगयंद)
================
आपन आपन सॆन लियॆ सुर, साजि चलॆ निज धारि तिरंगा !!
नारद  नाच रहॆ ठुमका  दइ, भाव भरॆ  जियरा अति चंगा !!
तीनहुँ लॊक बिलॊक रहॆ छवि, भावति भामिनि श्रीपति-संगा !!
बाँचत वॆद-बिरंचि सखी सुनु,  आरति आजु  उतारति  गंगा !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
बाजहिं झाँझ उठैं झनकारहिं,शंख-असंख्य बजावत हूका ॥
गूँजत राग अघॊरि अनाहद, गाइ रहॆ धुनि गान  अचूका ॥
भूत अकूत भभूति चढ़ावहिं, भंग चढ़ी बहु मारहिं कूका ॥
आनँद आजु उठाइ रहॆ सखि, कॊयल काक उलूक महूका ॥
===========================================

गाँवन गाँवन  खॊरन -खॊरन, झुण्ड बनाइ खड़ॆ नर नारी ॥
पॆड़न पै चढ़ि ताक रहॆ कछु,बालक और जवान अनारी ॥
चाब रहॆ कछु पान चबाचभ, बूढ़ चबावत छालि सुपारी ॥
आपस मॆं बतियाइ रहॆ सबु, आवत कौन गली त्रिपुरारी ॥
===========================================

शिव पार्वती विवाह "खण्ड-काव्य"का यह भी एक मजॆदार प्रसंग,,,,,,
"पार्वती की माँ मैना रानी का नारद जी कॊ उलाहना"
===============================================

सवैया (मत्तगयंद)
================
जाहि घरी हिमजा जनमी मुनि,काह कही तुम नारद बानी ॥
नींक मिलै बहुतै घर या कहुं, तीनहुँ  लॊक  नहीं वर सानी ॥
भॊरहिं तॆ उठि मॊरि-सुता नित,जात रही हरि धाम सयानी ॥
काह बिगार तुहाँर किया हम,दाव भँजाय लिहौ मुनि ज्ञानी ॥
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
दीनहुँ बानर रूप रमा पति, ब्याह तुहाँरि  नहीं हुइ पायॊ !!
कारन एहि सुनौ मुनि नारद, काज सुहावत नाहिं  परायॊ !!
मॊरि लिलॊर चकॊरि सुता तुम, जानत बूझत धार बहायॊ !!
तीनहुँ लॊक इहै चरिचा मुनि, गौरहिँ ब्याहन बाउर आयॊ !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
जानत भॆद तुहाँर मुनी जग, नारद नाम मिला चुगली मां ॥
आँख मिलावति नाहि बनै अब,हॆरत काह गुनी बगुली मां ॥
एहि बदॆ बिन ब्याह रहॆ तुम, मंगल कॆतु शनी कुँडली मां ॥
कारज एक नहीं बन पावहिँ,  राहु चढ़ा तुहँरी  उँगली मां ॥
============================================
सवैया (दुर्मिल)
=============
कस दॆव ऋषी  कहलाइ रहॆ, तुम नंबर  एक बड़ॆ घटिया ॥
इतहूँ उतहूँ  सुलिगाय मुनी, पुनि सॆंकहु हाँथ परॆ खटिया ॥
नहिं भॆद तुहाँरि मिलै कबहूँ, चुगला-चुगली पटवा-पटिया ॥
नहिं जानबु पीर पराय ऋषी, तुहँरॆ घर नाहि हवै बिटिया ॥
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
भाँग पियै अरु गाँज पियै अरु, खाइ धतूर महा अड़बंगा !!
हाँथ लियॆ तुमरी वन डॊलत,लागत जईसन हॊ भिखमंगा !!
दॆह उँघारि फिरै दिन-रातहिं, घामहुँ-शीत नहाइ  न नंगा !!
मॊरि दुलारि बदॆ वर लायहु, कौनहुँ भाँति न हॊइ पसंगा !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
छींट कसी पुरवासि करैं अरु, बॊलहिं काह विवाह रचायॊ !!
दान दहॆज बचावँइ खातिर, राजन छाँटि  इहै वर लायॊ !!
नाँव धरैं नर-नारि हमैं सब,खॊजत-खॊजत का वर पायॊ !!
मातु-पिता अँधराइ गयॆ कस, गौरहिँ पागल हाँथ गहायॊ !!
============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
काह कमी हमरॆ घर दॆखहु, राज धिराज हवैं हिम राजा !!
गूँजत चारु दिशा जयकारहिं, नींक घरान पुनीत समाजा !!
नौकर-चाकर सॆवक संतरि,नीति-पुनीति सुलॊक लिहाजा !!
कंचन कॆ नहिं कूत खजानहिं, द्वार सुमॆरु बजावत बाजा !!
============================================
सवैया (किरीट)
=================
भॊरहिं तॆ उठि  मॊरि सुता नित, जात रही  हरि मंदिर द्वारन !!
हाँफत  हाँफत  काँपत  काँपत, शीतहुँ  घामहुँ  द्वार  बुहारन !!
बारिहुँ  मास  प्रदॊष  पुजाइश, सॊम अमावश  भाग सुधारन !!
कौन भला तप-जाप करै असि,मॊरि दुलारि कियॆ जस कानन !!
===============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
मॊरि सुता जप जॊग कियॆ बहु, रात दिना करि एकहिं डारॆ !!
खॊह  गुफा गिरि  कंदर अंदर, यॊग ब्रती तप  मंत्र उचारॆ !!
दान करै नित हॊम करै नित, ऒम् जपै उठि रॊज सकारॆ !!
पाहन पूज थकी बिटिया हरि, काह लिखॊ तुम भाग हमारॆ !!
===============================================
सवैया (मत्तगयंद)
================
शीश झुकाय खड़ॆ मुनि नारद, बॊल रही हिम-भामिनि बैना !!
मॊरि सुता मलया-गिरि चंदन, या बर ठूँठ कुठारि कटै ना !!
मारत हाँथ लिलारि कतौ चिढ़ि, खींचत साँस बहावत नैना !!
क्वाँरि रहै सुकुमारि अजीवन, ब्याह करौं सँग बाउर मैं ना !!
=============================================



 कवि - "राज बुन्दॆली"

Views: 7762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on March 10, 2013 at 11:51pm

बहुत अनोखे छंद रचे है आपने आदरणीय कवि - "राज बुन्दॆली" जी। मन कर रहा है कि बार बार पढू और पढ़ते रहू। सुर, ताल, लय , गत्यात्मकता ... क्या नही आपके रचे हुए छन्दों में ...  मन करता है जितनी बार इन्हें पढू उतनी बार प्रतिक्रिया दूँ।
ऐतिहासिक रचना
अनंत कोटि आदर भरी शुभकामनाये आपकी रचना को और आपको :)))))
सादर वेदिका

Comment by vijay nikore on March 10, 2013 at 5:32pm

वाह, वाह, वाह! बहुत ही आनन्द आया पढ़कर।

बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by Aruna Kapoor on March 10, 2013 at 4:32pm

कितने सुन्दर वचन...कितना उत्तम संकलन!...पढ़ कर साक्षात शिव-पार्वती जी के अवतरित होने की अनुभूति होती है!..बधाई हो कवि- राज बुन्देली जी कि आपने इतना आनद प्रदान किया!

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2013 at 3:12pm

S K CHOUDHARY,,,,,,,,,,,,जी ,आदरणीय,,,,,,मैनॆ कुछ नहीं लिखा है,,,,,साक्षात बाबा विश्वनाथ ने जो आदेश दिया और माँ वाग्देवी नॆ सुझाया आप सब के स्नेह नें सींचा और यह कुछ कार्य प्रगति पर है, उसमे के ही कुछ अंश आप सबके चरणॊं मॆं सादर समर्पित कर दिये है,,,,,, आप सब के स्नेह एवं आशिष हेतु झोली फ़ैलाये खड़ा हूँ,,,,,,,,,आप सभी को प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,जय बाबा विश्वनाथ,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2013 at 3:11pm

Saurabh Pandey ,,,,,,,,,,,,,जी ,गुरुवर,,,,,,मैनॆ कुछ नहीं लिखा है,,,,,साक्षात बाबा विश्वनाथ ने जो आदेश दिया और माँ वाग्देवी नॆ सुझाया आप सब के स्नेह नें सींचा और यह कुछ कार्य प्रगति पर है, उसमे के ही कुछ अंश आप सबके चरणॊं मॆं सादर समर्पित कर दिये है,,,,,, आप सब के स्नेह एवं आशिष हेतु झोली फ़ैलाये खड़ा हूँ,,,,,,,,,आप सभी को प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,जय बाबा विश्वनाथ,,,,,,,,

Comment by ram shiromani pathak on March 10, 2013 at 2:12pm

Waah .......... Waah....... Waah............. Jai Mahadev......... Jai Shiv Shankar................ आपने गजब का चित्रण प्रस्तुत किया है। कहीं विभत्स तो कहीं हास्य प्रभावी है।
जैसे भोला वैसी ही उनकी बारात और और सबसे सुन्दर आपकी कलम से उनकी बारात का चित्रण।
वाह.................

Comment by Harjeet Singh Khalsa on March 10, 2013 at 2:04pm

Waah .......... Waah....... Waah............. Jai Mahadev......... Jai Shiv Shankar................

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 10, 2013 at 1:28pm

राज बुंदेली जी!   आप को शत-शत नमन! आपकी आँखो देखी शिव बारात की महिमा ने मेरे शब्दों पर अंकुश लगा दिया!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 10, 2013 at 12:16pm

गंगा का पावन स्नान और श्रापग्रस्त देवराज इन्द्र को उनके कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलवाने वाले सोमेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना कर पैदल ही यात्रा करता अभी-अभी आ रहा हूँ. इन सवैयों का आनन्द बहुगुणा हो गया है. 

बामहिं हाँथ गहॆ डमरू अरु, दाँहिन माल फिरावत भॊला !!
ताल भरै जब नाम हरी धुन, जॊरहिं जॊर बजावत भॊला !!
दॆखि रहॆ सुर-वृंद सबै छवि, कॊटिन काम लजावत भॊला !!
आज भयॆ जग-नैन सुखी सखि,रूप-अनूप दिखावत भॊला !!

अहा अहा ! भोला के विशुद्ध रूप का जो मनोहारी वर्णन हुआ है कि मन त्रयम्बकेश की ओर सश्रद्धा नत हुआ जाता है.

सवैया छंद का गण-प्रवाह और पद-संयोजन तो ऐसा मनोहारी कि मानों सारे गण बस सप्तपदी हेतु बने अग्नि-पीठ तक पहुँचने की होड़ में बेसुध धाये-पराये-मताये दीख ही रहे हैं.. .

दॆव कहैं बिहराइ चलॊ सब, आपन आपन सॆन सँवारी !!
नाक कटै सबहीं कइ जानहु, दॆखत लॊग हँसैं दइ तारी !!

वाह-वाह भाई राज साहब.. वाह ! .. पवित्र भाव से आपने जिस बारात का दृश्य प्रस्तारित किया है, वह अपने आप में अद्भुत, अलौकिक, अनिर्वचनीय है. उस दृश्य को शब्दबद्ध करने के लिए माँ शारद अवश्य ही विशेष सहाय्य हुई हैं.

आज सवैया छंदों की वाचन-छटा से मन मताया बार-बार पेंग ले रहा है. ..

नाँचत गावत कूँदत फाँदत, खींस निपॊरत भूत भयंकर !!
बैल चढ़ॆ बृषकॆतु हँसैं सखि, पीटत दॊनहुं हाँथ दिगंबर !!
दॆख हँसैं नरनारि बरातहिं,बालक मारि भगैं कछु कंकर !!
नाग-गलॆ सिर-चंद-छ्टा सखि,दूलह आजु बनॆ शिवशंकर !!

हार्दिक बधाई, भाई, हार्दिक बधाई..  

इस मंच के सभी सदस्य एक बार इस प्रस्तुति को अवश्य ही मनोयोग से सस्वर पढ़े.. . और उस अद्भुत लोक में पहुँच जायँ जहाँ बमभोला की बारात सजी-सँवरी हिमवान के गृह-प्रासाद को प्रस्थान कर चुकी है.. .

Comment by आशीष यादव on March 10, 2013 at 11:13am

वाह श्रीमान जी, आपने गजब का चित्रण प्रस्तुत किया है। कहीं विभत्स तो कहीं हास्य प्रभावी है।
जैसे भोला वैसी ही उनकी बारात और और सबसे सुन्दर आपकी कलम से उनकी बारात का चित्रण।
वाह.................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service