"फूल हो क्या तुम" ????
तुमसे खूबसूरत कौन होगा
क्या नाज़ुकी है
क्या तराश है
इस दुनिया मैं कोई नही
दूजा तुमसा
भँवरे तुम्हे यूँ भरमाते हैं
और तुम
इठलाने लगती हो
फूल हो क्या तुम ??
पता है
एक कोना होता है
जिस्म में
छोटा सा
जो हम सब को
सच ही बताता है
सच ही दिखाता है
रूको रूको
यूँ मत मुस्कुराओ
तुम जो सोच रही हो न !
दिल नहीं है
वो है दिमाग
जो काम नहीं करता
हाई टेक झूठ के आगे
क्यूँकि
ये झूठ होता ही
इतना मीठा है
की सात क्या
चौदह जन्म तक
तुम्हे भरमा सकता है
और तुम
बन जाती हो
मक्खी और
झूठा गुड
तुम चिपकी रहती हो
उसी से
फूल हो क्या तुम ???
आईने तोड़ दिए
तुमने
देखती हो
उसकी आँखों से
जिसमे तुम
सजी धजी
गुड़िया सी
हवस की भूख
मिटाती
उसकी जान बनी रहती हो
फिर मन भर जाने
पर तुम फिर बन जाती हो
गुड मे चिपकी मक्खी
जिसे वो निकाल फेंकता है
अपने सोने के पहले
पीने वाले दूध से
क्यूँक़ि
उसके पास तुम जैसा कोई
नया फूल है
जिसमे शहद है
शहद
लेकिन फिर भी
फूल तो हो तुम
है कि नहीं
कविता है ये
सच्ची
और तुम किरदार
पूछो मैं कौन
मैं हूँ
तुम्हारे घर का आईना
जिसमे धूल जम चुकी है
आज देखना जाकर के
फूल हो क्या तुम ?????
संदीप पटेल "दीप"
Comment
sandeep ji sunder rachana ke liye badhai
सच का आइना दिखाती सुन्दर कविता
पता है
एक कोना होता है
जिस्म में
छोटा सा
जो हम सब को
सच ही बताता है
सच ही दिखाता है
रूको रूको
यूँ मत मुस्कुराओ
तुम जो सोच रही हो न !
दिल नहीं है
वो है दिमाग
जो काम नहीं करता
हाई टेक झूठ के आगे.......अच्छी लगी,संदीप भाई हार्दिक बधाई
//फूल हो क्या तुम ??//
बढ़िया प्रयास है, एक प्रश्न जो पूरी रचना में केंद्र विन्दु की भाति निर्वाह करता है, रचना अच्छी लगी, बधाई स्वीकार हो ।
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