ऐसी ही एक शाम थी
कुछ गुलाबी थोड़ी सुनहरी
सूर्य किरणें जल में तैरती
तरल स्वर्ण सी चमकीली
फैली थी घनी लताएँ
हरित पत्तों बीच गहरी
बैगनी फूलों की छाया
हृदय में थी ठहरी सी
मन झील सा शांत
इच्छाएँ थीं चंचल , अकिंचन
पहेलियाँ कितनी अनबुझी
तैर रही थी मीन सी
गोद में खुला पड़ा था
पत्र एक , किसी अंजान का
उपेक्षित सा यूँ ही
बरसों पहले था पढ़ा
कितनी रातें बीती थी
सपनों में भटकती थी
उपवन में कभी , कभी –
निविड़ वन में अकेली
सुबह थकी थकी पलकें
अनकही कुछ कथा सुनाती
दर्पण भी व्याकुल होकर
मुझसे थी नज़रें चुराती
यादों की बारात निकली
उन भटकते बादलों में
ढूँढ़ती तसवीर किसकी
मैं मचलते ख्यालों में
जीवन सामान्य था
रोज ऊषा जगमगाती
शाम होती थी नित्य
रात्रि भी चुपचाप आती
2
वसंत ऋतु हँसता आया
हँसने लगा लाल गुलमोहर
कुछ डाली पर खिला मनोहर
कुछ धरती पर हुआ न्योछावर
एक दिन छोटी सी प्यारी
लालमुनिया आयी उड़ती
प्रीतम से मिलने को व्याकुल
मीठी सुरीली गीत गाती
खिड़की से रोज़ देखती
बाग में वह उड़ती फिरती
जाने क्या संदेश सुनाती
बावरी मैं समझ न पाती
आयी थी नन्हीं परी वह
सोये मेरे सपने जगाने
इच्छाओं ने ली अंगड़ाई
कल्पनाओं को पंख लगाने
3
बंद कमरे में बरसों से थी
आधी सोयी आधी जागी
दूर तक बिखरे थे तारे
देखती रहती अभागी
कभी उपवन में था घर
बना झाड़ियों का मेला
घने जंगलों को काटता
कौन आया भटका भूला
उलझा और फैला कसभाँवर
किसने अंधेरे में सुलझाया
जो काया थी शाप जड़ित
उसने किसका स्पर्श पाया
अंजान सा रूप एक
आकार में ढलने लगा
धुंधली तसवीर किसी की
दिल में उभरने लगा
भीतर और बाहर निशिदिन
दिये की एक लौ जलाकर
बनाती रही अपनी तकदीर
उस रूप को आलोकित कर
4
प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत
Comment
बेहद सुन्दर एवं लाजवाब पंक्तियाँ आदरेया हार्दिक बधाई स्वीकारें.
भीतर और बाहर निशिदिन
दिये की एक लौ जलाकर
बनाती रही अपनी तकदीर
उस रूप को आलोकित कर
4
प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत
बहुत सुंदर पंक्तियां शानदार रचना हेतु हार्दिक बधाई कुन्ती जी
प्रस्तुत सुन्दर रचना के लिए आपको सादर बधाई, आदरणीया कुन्तीजी.. .
रचना की पंक्तियों से मन प्रसन्न है.
आदरणीया कुन्ती जी:
सर्वप्रथम ... आपने शीर्षक "ऐसी ही एक शाम थी" बहुत भावात्मक चुना है। यह शीर्षक किसी भी
संवेदनशील व्यक्ति को उसकी जी हुई किसी शाम में डुबो सकता है।
दूसरा, यह कि आपकी पंक्तियाँ चित्र को अंकित करने में सफ़ल हुई हैँ।
सादर,
विजय निकोर
आदरणिय रक्ताले जी, नमस्कार, आपको बहुतबहुत धन्यवाद. जीवन में सबको वसंत रीतु मिले यही कामना है.
आदरणिय प्रसाद जी , नमस्कार ,मेरी रचना पढे .आपकी प्रेरणा मिलती रहे .बहुत बहुत ध्न्यवाद.
धरती आकाश का मिलन दूर क्षितिज पर प्रातः भौर में और संध्या में दिखाई देता है, तब मन ऋतुराज बसंत सा हो
जाता है, ऐसे ही विचार मन में आये आपकी रचना पढ़कर, सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई कुंती जी | साथ ही
होली की हार्दिक शुभ कामनाए
प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत.............बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.
आदरणीया कुंती जी सुन्दर रचना. सादर बधाई स्वीकारें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online