दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं
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1)
रंग बिरंग गुलाल लियॆ सखि, ताकत झाँकत गैल हमारी !!
संग दबंग लफंग लियॆ कछु, आइ गयॊ अलि छैल-बिहारी !!
मॊहन माधव मारि दई तकि, जॊबन बीच भरी पिचकारी !!
भूल गई सुधि लाजनि तॆ सखि,भीगि गई रँग कॆशर सारी !!
2)
अंग अनंग उमंग उठी सखि, भंग मतंग करैं किलकारी !!
हूक उठी हिय कूक उठी जस, नागिन-नाग भरैं फुसकारी !!
टूट रहॆ प्रति अंग सखी सुनु, छूटि रही मुख तॆ सिसकारी !!
लाज लिहाज भुलाइ गई जब,बाँहि गही कसि कै वनवारी !!
कवि - राज बुन्दॆली
३०/०३/२०१३
Comment
आदरणीय राज बुन्देली साहब बेहद सुन्दर सवैया प्रस्तुत किया है आपने, हार्दिक बधाई मित्रवर
लाज लिहाज भुलाइ गई जब,बाँहि गही कसि कै वनवारी !!
बहुत ही सुन्दर!
राज जी,
अति मनमोहक !
सादर,
विजय निकोर
वाह राज बुंदेली जी मन मुग्ध हो गया इतने सुंदर सवैया पढ़ कर क्या चित्र खींचा है आपने हार्दिक बधाई आपको इस उम्दा प्रस्तुति पर |
बहुत सुन्दर सर जी .......................दोनों ही छंद लाजवाब हैं बहुत बहुत बधाई आपको जय हो
होली की ठिठोली के रस में रचे बसे लालित्यपूर्ण सवैयों के लिए हार्दिक बधाई आ. कवि राज बुन्देली जी.
मेरे छोटे से सुझाव को यथोचित मान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, राज भाईसाहब.
"Laxman Prasad Ladiwala जी भाई साहब आपका स्नेह मिला यह मेरा सौभाग्य है,,,इस स्नेह हेतु दिल से आभार आपका,,,,,,,,,,,"
आदरणीय ,,,, Saurabh Pandey जी,,,, प्रणाम,,,,, प्रणाम,,,,, प्रणाम,,,, आपको,,,,आपका स्नेह मिला तो मुझे और कई गुना ऊर्जा मिली,,,,आपने जो सुधार बताया है ,,,मैने मेरी मूल प्रति मे कर लिया है,,,,,,,,,,,,,बहुत बहुत आभार इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,पुन: प्रणाम,,,,,,,,,
आपके सवैयाप्रयास में अतिशुद्ध से कम की अपेक्षा स्वीकार्य ही नहीं अब, राज भाई.
बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है. पहिले सवैये में फाग-धावा और दूसरे में फाग-सम्पन्नता बहुत सुन्दर ढंग से निखरी है. विशेषकर दूसरे सवैये पर बार-बार बधाई. सटीक बिम्बात्मक प्रयोग हुआ है जहाँ गर्व लज्जा से सकाम संलग्न होता है. इस लालित्य-भाव हेतु ढेरों बधाइयाँ.
एक बात : ’अँग अंग’ के स्थान पर प्रति अंग किया जाय तो शिल्प और भाव दोनों सधे होंगे.
बधाई व शुभकामनाएँ.
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