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आदरणीया सीमा जी,
एक बार, दो बार , बार बार इतना सुन्दर भावप्रवण गीत आपकी इतनी मधुर आवाज में सुनकर बस मन मुग्ध है.....बहुत बहुत बढ़िया, पूरे उतार चढ़ाव के साथ भावों को बहुत खूबसूरती से उभारते हुए गाया है आपने...
इस सुन्दर गायन के लिए दिल से बहुत बहुत बधाई..
आप मंच से बीच बीच में गायब हो जाती हैं.... आपकी रचनाओं का बहुत इंतज़ार रहता है. अब तो आपके गायन का भी रहेगा.
सादर.
भाव, शब्द, कथ्य, तथ्य, शिल्प हर विन्दु से संतुलित इस गीत पर काव्य महा-उत्सव आयोजन के दौरान ही बहुत कुछ कहा-सुना जा चुका है.
गीत के सस्वर निवेदन में सीमाजी का स्वर, उनके स्वर की लयात्मकता, उस लय की सधी हुई आवृति तीनों समुच्चय में कर्णप्रिय तो लगे ही हैं, इस संप्रेषण-संसृति में रचनानुरूप भावभरा अपेक्षित ठहराव भी सहज प्रतीत होता है, जो श्रोता की एकाग्रता को थामे रहता है. स्वरांजलि में यह ठहराव मानों एक निर्दोष हठ लिये हुए है, मौन की वाचालता को भावजन्य आयाम देता हुआ. .. शब्द जब थकने लगें मैं तब सुनाऊँगा हृदय की.. .. तब तक के लिए .. . तू मौन को जो पढ सके सुन मैं बहुत वाचाल हूँ.. .
सादर
इतनी मीठी आवाज में गीत सुन के दिल खुश हो गया ... बहुत बहुत बधाई सीमा जी
आदरेया सीमा जी सादर, बहुत सुन्दर गीत सुनकर लगा जैसे पहले भी सुना है पुनः देखने पर समझ आया की यह ओबीओ महोत्सव में सुना था. सचमुच सुन्दर गीत यकीन मानिए आपके स्वर ने गीत में जान डाल दी है. बहुत सुन्दर पुनः बधाई. आशा करता हूँ आगे भी आपसे ऐसे ही सुन्दर गीत सस्वर सुनने को मिलते रहेंगे.
सादर.
इस अत्यंत ही मधुर वाणी में मधुर शब्दों का मेल एक सुखद अनुभूति दे गया..!
अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत
बधाई स्वीकारें आदरेया सीमा जी।
सुन्दर प्रस्तुति!
जी उठा जीवन उड़ा
बेख़ौफ़ पहने
फाग के पर
कुछ पलों को ही सही
पल कट गए संत्रास के
इस अत्यंत ही मधुर वाणी में मधुर शब्दों का मेल एक सुखद अनुभूति दे गया..!
अद्भुत, अद्वितीय, अपूर्व.. सादर शुभकामनाएँ.. आदरणीया..!!
ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब
आपकी रचना और आपकी आवाज दोनों ही
बहुत बहुत बधाई हो आपको
क्या बात है
बार बार सुन रहा हूँ
सच कहूँ किसी कवियत्री को पहली बार इतना मीठा सुन रहा हूँ .........हमें आप पर गर्व है ..............लाजवाब
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