For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलियाँ छंद - लक्ष्मण लडीवाला

 
सहन करे आलोचना, नेता वही महान,
ताने सहना सीख ले, नेता असली  मान |
 नेता असली मान, मन में राज छुपाय ले,  
संख्या बल का भान, समर्थन भी जुटाय ले |
वोटो का रख मान, गिद्ध द्रष्टि इनपर धरे,
समय का रखे ध्यान, लात भी वह सहन करे| 
.
(2)
सच का साहस जो करे,तनहा वह रह जाय  
देर तक खामोश  रहे, सन्नाटा छा जाय |
सन्नाटा छा जाय, पर नहि जमीर बेचना,
साथ अगर हो नाथ, नहीं फिर तम से डरना|
चुने दर्द का साथ,  खेल है यह हिम्मत का,
कह लक्ष्मण कविराय,जुटाले साहस सच का|

 

 
- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला    

Views: 638

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 17, 2013 at 9:41am

कुंडलियाँ छंद द्रष्टि डालकर टिप्पणी करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 12:22am

आपकी कुण्डलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.. .

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 16, 2013 at 3:45pm

सच के साहस पर रची कुंडलिया छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री योगी सारस्वत जी 

यूँ ही स्नेह बनाए रखे, शुभम 

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 11:29am
सच का साहस जो करे,तनहा वह रह जाय  
देर तक खामोश  रहे, सन्नाटा छा जाय |
सन्नाटा छा जाय, पर नहि जमीर बेचना,
साथ अगर हो नाथ, नहीं फिर तम से डरना|
चुने दर्द का साथ,  खेल है यह हिम्मत का,

कह लक्ष्मण कविराय,जुटाले साहस सच का

वाह

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 10, 2013 at 9:25am

जी, अशोक जी. प्रथम दोहे के सैम चरण को "नीता असली मान" संशोधित करना भूल गया, फिर पोस्ट होने के

बाद महोत्सव-30 के आयोजन में एडिट करना भूल गया | दुसरे छंद में मै यह कहना चाह रह था कि सच बोलने

वाले को इस दुनिया में साथ नहीं मिलता और तनहा रहना पड़ता है | "तनहा वह रह जाय" से पाठक सुगमता

से समझ सकेंगें, आपका सुझाव उचित है |उचित मार्ग दर्शन एवं कुंडलियों के भाव पसंद करने के लिए आपको

बहुत बहुत आभार श्री अशोक रक्ताले जी  

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 9:02am

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर प्रणाम, सुन्दर कुण्डलिया छंद लिखे हैं. बधाई स्वीकारें.

प्रथम छंद में सम चरण को ज्यों का त्यों ही रखते हैं किन्तु आपने कुछ उलट पुलट कर दिया है.

द्वितीय दोहे के प्रथम पद का अर्थ नहीं निकल रहा है. इसे हम ऐसा कहें " सच का साहस जो करे, तनहा वह रह जाय," तो कैसा रहे.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 9, 2013 at 6:35pm

हार्दिक आभार आपका श्री राजेश कमार झा साहब, अभी तो सीखने के ही प्रयास में हूँ राजेश जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 9, 2013 at 6:33pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीया मीना पाठक जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on April 9, 2013 at 4:46pm

आदरणीय लड़ीवाला जी बहुत सुंदर प्रयास हुआ है । आपकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि आप सतत प्रयत्‍नशील रहते हैं, सादर

Comment by Meena Pathak on April 8, 2013 at 7:48pm

छंद और कुंडलियों का मुझे कोई ज्ञान नही है पर पढ़ के अच्छा लगा आदरणीय .. बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service