इल्जाम |
किस्मत का खेल है अनोखा , कोई हँसता या रोता | |
जब कोई इल्जाम लगाये , किसी की नाव डूबोता | |
सदा नीचा दिखाये बैरी, कल बल छल हरदम ढोता | |
तड़पते देख खुश होता है , चैन की नींद न सोता | |
छुप छुप कर जलते रहते हैं , घात लगाये रहते हैं | |
जब तक न लेते हैं बदला , जाल बिछाये रहते हैं | |
दिल में दहके आग की ज्वाला , ऊपर से खुश रहते हैं | |
नाश करना ठान लेते हैं , क्रोध में जलते रहते हैं | |
दूसरे की पुस्तक छपाया , अपना नाम छपा डाला | |
प्रोफ़ेसर ने ऐतराज किया , बली बकरा बना डाला | |
छेड़ छाड़ आरोप लगाया , घरवालों को बुलवाया | |
मार मार कर किये अधमरा , ला थाने में डलवाया | |
माँ बाप बिगड़े प्रोफ़ेसर पर , पर बीवी ना फिर बोली | |
मोहल्ले में मखौल उड़ा , बस मारन उमड़े टोली | |
थाना पुलिस मजाक उड़ाया , देख ये बुढा बौराया | |
जमानत नहीं मिलने वाली , जीवन भर लाभ कमाया | |
जीत हुई जब कचहरी में , प्रोफ़ेसर प्रूफ दिखाया | |
वर्मा पर पीछे जो बीता , क्या वो फिर वापस आया | |
श्याम नारायण वर्मा |
Comment
सही है कल को पुनः नहीं पाया जा सकता. सुन्दर रचना आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी.
श्याम नारायण जी , जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात है. आपने खूब लिखा है.समझ लें मगरमच्छ के तलाब में तैरके निकलना है.
बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर प्रणाम! रोचक!! यह संसार माया जाल से भरा है, सब कुछ जायज है। आपको हार्दिक बधाई। सादर,
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