घरनी -कविता | |
सदा चैन की बंशी बजती , जब घर में खुशहाली हो | |
जंगल में मंगल हो जाता , साथ अगर घरवाली हो | |
एक म्यान में दो तलवारें , चैन कहाँ मिल पायेगा | |
यदि यार का दखल हो घर में , बसा घर उजड़ जाएगा | |
जब दो फूल एक भौंरा हो , कहाँ मजा है जीवन में | |
दो बुलबुल बस एक फूल हो , कैसा लगता उपवन में | |
ख़ुशी का नजारा कब रहता , दो शेर सदा लड़ते हैं | |
काट मार घायल हो जाते , गिरे तड़पते रहते हैं | |
घरनी है सारे जीवन की , ऐसा अटूट नाता है | |
कच्चे धागे का बंधन है , साथ सुखमय बनाता है | |
बिना घरनी का कौन खुश है , सुख जो साथ निभाता है | |
जीता तो है चर जंगल में , जो पाया वो खाता है | |
खुशी ख़ुशी साथी हो हरदम , ऐसी घरनी प्यारी हो | |
सुख दुःख में सदा साथ रहे , हर अदा से न्यारी हो | |
जीवन रहे सदा हरा भरा , पूजा के अधिकारी हो | |
वर्मा खिला ही रहे उपवन , घरनी साथ हमारी हो | |
श्याम नारायण वर्मा |
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी! सादर प्रणाम
बहुत ही सुंदर रचना हुई है सादर बधाई स्वीकरें
कहीं कहीं प्रवाह बाधित है उसके लिए मैं विनय भाई साहब से सहमत हूँ
सादर
वर्मा जी , आपकी कविता में जुते भीगोकर मारने वाली बात हुई है. कहीं कहीं तीखे व्यंग के साथ ही साथ कवि ह्रदय की आंतरिक पीड़ा
भी झलक रही है.धन्यवाद.
सुन्दर भाव अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री श्याम नरेन वर्मा जी
प्रेम त्रिकोण को दर्शाती हुयी ......अंतर्मन मन को उद्देलित करती हुयी ....प्रेम देकर प्रेम की चाहना करती हुयी रचना ....
शुभकामनायें आदरणीय श्याम जी!
सादर गीतिका 'वेदिका'
बहुत सुन्दर बहुत बहुत बधाई
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