जाल में पडी मछली रोये -कविता | |
सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये | |
जाल डाले आते शिकारी , फिर उनसे कौन बचाये | |
साथ नहीं देता जब कोई , फिर आशा कौन दिलाये | |
जब फँस गयी माया जाल में , बस रब की आश लगाये | |
खाने वाले ज्यादा जग में , नहीं हैं बचाने वाले | |
जब मस्ती में झूमे कोई , पिस जाते रोने वाले | |
रोना धोना किसे सुहाता , सुन !चोट तड़पने वाले | |
कभी बात जब बाहर आये , तब जानें दुनिया वाले | |
जाल में पडी मछली रोये , बस बहता जाता पानी | |
तड़प तड़प कर मर मिट जाये , बनती है एक कहानी | |
किसको कहाँ कौन संभाले , कोई चाहे मनमानी | |
खेत चुग गयी चिड़िया आकर , बात बनी वहीँ पुरानी | |
जब लोग शान पर मरते हैं , विवश रहे टोपी वाला | |
जब आग धधकती रहती हैं , घी डाले धोती वाला | |
रोज नयी मछली ही जलती , चुप देखता पुलिस वाला | |
वर्मा माया की दुनिया में , आवो ! रोको घोटाला | |
श्याम नारायण वर्मा |
Comment
मनुष्य की बेबसी की दशा को छटपटाती मछली के समकक्ष रहते हुए मनोभावों की अभिव्यक्ति..
प्रस्तुति के लिए बधाई आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, सुन्दर कविता है. अच्छे भाव हैं किन्तु आदरनीय बृजेश जी की बात भी सही है एक आलोचक की तरह अपनी रचना पढ़ने से कुछ सुधार तो अवश्य हो होते हैं.
सुंदर प्रयास.....
बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है उसके लिए आपको बधाई
तत
आदरणीय बृजेश जी के कहे से सहमत हूँ
सादर
सुन्दर प्रयास! मेरा अपना अनुभव है कि अपनी रचना को खुद कई बार पढ़ना चाहिए। इससे अपनी कई गलतियां पता चलती हैं रचना और सुधर कर आती है।
सुन्दर प्रयास के लिए बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी
श्याम नारयण जी , आपने अपनी रचना में बहुत सारे confusion पैदा कर रखे है .एक भाव को लेकर आप बहुत कुछ कहना तो चाहते
हैं मगर शैली का उचित स्थान न दे पाये है आप इस रचना पर पुनः विचार करें.धन्यवाद .
आ0 श्याम नारायण वर्मा जी, "रोज नयी मछली ही जलती, चुप देखता पुलिस वाला !
वर्मा माया की दुनिया में आवो ! रोको घोटाला।" अतिसुन्दर, हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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