For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये |

जाल में पडी मछली रोये -कविता |
सागर में भी तडपे मछली , जब लहरों में फँस जाये |
जाल डाले आते शिकारी , फिर उनसे कौन बचाये |
साथ  नहीं देता जब कोई , फिर आशा कौन दिलाये |
जब फँस गयी माया जाल में  , बस रब की आश लगाये |
खाने वाले ज्यादा जग में , नहीं  हैं  बचाने वाले | 
जब मस्ती में झूमे कोई , पिस जाते  रोने वाले | 
रोना धोना किसे सुहाता , सुन !चोट तड़पने वाले |
कभी बात जब बाहर आये , तब जानें  दुनिया वाले |
जाल में पडी मछली रोये , बस बहता जाता पानी |
तड़प तड़प कर मर मिट जाये , बनती है एक कहानी |
किसको कहाँ कौन संभाले , कोई चाहे  मनमानी  | 
खेत चुग गयी चिड़िया आकर   , बात बनी वहीँ पुरानी |
जब लोग  शान पर मरते हैं , विवश रहे  टोपी वाला |
जब आग धधकती रहती हैं , घी डाले  धोती वाला |
रोज नयी मछली ही जलती , चुप देखता पुलिस वाला | 
वर्मा माया की दुनिया में , आवो ! रोको घोटाला |
श्याम नारायण वर्मा 

Views: 413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 14, 2013 at 3:39pm

मनुष्य की बेबसी की दशा को छटपटाती मछली के समकक्ष रहते हुए मनोभावों की अभिव्यक्ति.. 

प्रस्तुति के लिए बधाई आ० श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 14, 2013 at 12:25pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, सुन्दर कविता है. अच्छे भाव हैं किन्तु आदरनीय बृजेश जी की बात भी सही है एक आलोचक की तरह अपनी रचना पढ़ने से कुछ सुधार तो अवश्य हो होते हैं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 10:22am

सुंदर प्रयास.....

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 9:45pm

बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है उसके लिए आपको बधाई 

तत 

आदरणीय बृजेश जी के कहे से सहमत हूँ 

सादर 

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 7:22pm

सुन्दर प्रयास! मेरा अपना अनुभव है कि अपनी रचना को खुद कई बार पढ़ना चाहिए। इससे अपनी कई गलतियां पता चलती हैं रचना और सुधर कर आती है।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 13, 2013 at 3:58pm

सुन्दर प्रयास के लिए बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by coontee mukerji on April 13, 2013 at 12:13am

श्याम नारयण जी , आपने अपनी रचना में बहुत सारे confusion पैदा कर रखे है .एक भाव को लेकर आप बहुत कुछ कहना तो चाहते

हैं मगर शैली का उचित स्थान न दे पाये है  आप इस रचना पर पुनः विचार करें.धन्यवाद .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 12, 2013 at 10:47pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा जी, "रोज नयी मछली ही जलती, चुप देखता पुलिस वाला !
वर्मा माया की दुनिया में आवो ! रोको घोटाला।" अतिसुन्दर, हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service