For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीर छंद या आल्हा छंद

बीर छंद या आल्हा छंद
(यह छंद १६-१५ मात्रा के हिसाब से नियत होता है. यानि १६ मात्रा के बाद यति होती है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।) होती है. )

एक प्रयास किया है मैंने गुरुजनों का अमूल्य सुझाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा है !!

कूद पड़ी जब रण में माता ,दानव दल में हाहाकार !
एक हाथ में भाल लिए थी ,दूजे हाथ पकड़े तलवार !!


हाथ काटती पैर काटती ,कछु दुष्ट का लै सिर उपार !!
दौड़ा -दौड़ाकर तब माता ,करती जाय भीषण संहार !


आँखों में इक क्रोधानल था ,गले धरे मुंड की माल !
सभी निशाचर लगे कापने,सम्मुख दिखे हो खड़ा काल!!


कुछ बिलखाते कुछ चिल्लाते,मरे पड़े कुछ चरों ओर!
प्रयास सभी विफल हो जाते ,दुष्टों का कुछ चले न जोर !!


देखि रौद्र रूप माता का ,कालहु फिर तब डरि डरि जाय !
असहाय से खड़े सब पापी,सूझे ना फिर कोय उपाय!!


अंग-भंग करती दुष्टों का ,मर्दन करती जाती मान !
पथ ना कोई सूझ रहा था ,टूट गया सारा अभिमान!!


अडिग खड़ी थी माता रण में,मानों जैसे खड़ा पहाड़ !
सारी सृष्टि कम्पित हो गयी ,ऐसी करती जाय दहाड़ !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 2:18am

१६-१५ की यति का विधान लिखते हुए भी दूजे हाथ पकड़े तलवार  कहना जबकि वह सरलता से दूजे हाथ धरे तलवार  हो सकता था !

इसतरह की हड़बड़ी का कारण समझ में नहीं आया, भाई विंध्येश्वरीजी. आपकी रचनाओं से बहुत कुछ की अपेक्षा रहती है.

आप जैसे कुछ प्रतिभावान प्रयासकर्ताओं का वाह-वाही का अतिशयतापूर्वक आग्रही होना बहुत सालता है. लेकिन मैं कर ही क्या सकता हूं सिवा इंगित करने के ?

शुभेच्छाएँ.

Comment by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 12:51pm

hardik aabhar adarneey ashok sir ////apke  sujhav par dhyan dunga.....

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 2:23pm

darneeyaa  vedika didi galti se ho aa gaya hai jisase matra bhi jyda ho gai hai......aapane apana amulya sujhav diya iske liye hardik aabhar

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 2:21pm

भाई राम शिरोमणि जी सादर, सुन्दर प्रयास हुआ है वीर छंद पर, हार्दिक बधाई स्वीकारें. आदरणीय राजेश जी ने सही कहा है प्रवाह पर काम करने की आवश्यकता है, मुझे लगता है मात्रा गणना की चुक ही प्रवाह में बाधा है. कुछ शीघ्रता में पोस्ट डाल दी गयी लगती है. एक बार मात्राओं की गणना अवश्य देखें एक टंकन त्रुटी भी है. आपकी छंद रचना के अंतिम पंक्तियों पर एक प्रयास मैंने भी किया है.देखें.

अडिग खडी थी माता रण में, सम्मुख जैसे होय पहाड़ |

सारी धरती थर-थर काँपे, करती माता वार दहाड़ ||

Comment by वेदिका on April 10, 2013 at 2:20pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी सादर ....
अडिग खड़ी थी माता रण में,मानों जैसे हो खड़ा पहाड़ .....को लय बद्ध गाने में हो अतिरिक्त जान पड़ रहा था ....
उर्जा से भरपूर आल्हा लिखने के लिए बधाई 

सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by ram shiromani pathak on April 10, 2013 at 1:23pm

hardik aabhar adrneey shukla g........

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 11:56pm

प्रिय राम शिरोमणि जी सर्व प्रथम तो आप को ढेर सारी बधाई माह के सक्रिय  सदस्य चुने जाने पर 

पुनः आप के वीर आल्हा छंद के रंग विखेरने के लिए बधाई मन रोमांचित हुआ 
..जय श्री राधे आभार प्रोत्साहन हेतु 
भ्रमर ५ 
Comment by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 8:38pm

adarneey kewal bhai hardik aabhar,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 8:37pm

hardik aabhar bhai rajesh ji..............abhi to seekh raha hu aap logon ka sahyog aur margdarshn milega to kuchh ban payega

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 8:01pm

आ0 पाठक जी, ’अडिग खड़ी थी माता रण में, मानों जैसे हो खड़ा पहाड़ !
सारी सृष्टि कम्पित हो गयी, ऐसी करती जाय दहाड़ !!’अतिसुन्दर मित्र! बड़ा जोश भर दिया, लगता है..कछु दुष्ट का लै सिर उपार !! के स्थान पर..कछु दुष्ट का लै सिर उतार!! लिखना चाह रहे थे। बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service