For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घनाक्षरी प्रथम प्रयास

सीस झुके है सबके ,करते हुए वन्दना
लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है!
जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़,
मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!

पल भर अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,
पूजन में लीन सब, कष्ट भूल जाते है !
जान पड़ता हैं आज,डूबे सबहि भक्ति में,
छोड़कर काम धाम, देखो चले आते है !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 9:57pm

सुन्दर प्रयास के लिए बधाई श्री राम शिरोमणि जी 

Comment by shalini kaushik on April 14, 2013 at 8:53pm

hame to seekhne ko hi mil raha hai .aabhar

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 2:05pm

हार्दिक आभार आदरणीय  अशोक सर !बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखे...सादर 

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 2:04pm

हार्दिक आभार आदरणीया प्राची मैम!बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखे...सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 13, 2013 at 11:37pm

भाई राम शिरोमणि जी सादर, सुन्दर प्रयास हुआ है घनाक्षरी पर, यह वार्णिक छंद है, मैं कई बार लिख कर भी इसके प्रवाह को ठीक से नहीं पकड़ पा रहा हूँ. आप अन्य छन्दों में जिस तेजी से आगे बढ़ रहे हैं मुझे यकीन है आप कवित्त को भी अच्छे से रच सकेंगे. ओ बी ओ  पर भोजपुरी रचनाओं का एक उत्सव आयोजित हुआ था उसमे आदरणीय बागी जी द्वारा  गाये कवित्त  का ऑडियो  सुनकर आप इसके प्रवाह को साध सकते हैं. http://www.openbooksonline.com/group/bhojpuri_sahitya/forum/topics/...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 13, 2013 at 10:55pm

प्रिय राम शिरोमणि जी 

नए नए छंदों पर आपका प्रयास बहुत सुखद लगता है... 

घनाक्षरी पर आपका  जगज्जननी को समर्पित यह प्रथम प्रयास मुझे बहुत अच्छा लगा.

यह ज़रूर है कि गेयता निर्बाध नहीं है... पर निरंतर प्रयास से आप इसे जल्दी ही साध लेंगे..

सद्प्रयास के लिए शुभकामनाएँ 

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 7:30pm

भाई मैं इस विधा के बारे में तो कुछ नहीं जानता, सो मेरे लिए तो यह विधा काला अक्षर भैंस बराबर।
हां, इस नवरात्रि पर माता का यह स्मरण दिल को भा गया।
जय मां दुर्गे!

Comment by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 10:00pm

आदरणीय संदीप भाई  जी ,!आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक  आभार !!बेहतर लिखने का प्रयाश करूँगा 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 9:53pm

आदरणीय राम भाई बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है 

सादर बधाई स्वीकारें 

तत प्रवाह के क्रम में आदरणीय विनय भाई से सहमत हूँ 

उसे सुधारने का कुछ प्रयास किया है 

सीस सबके झुके हैं ,करते हुए वन्दना 
लोग न अघाते माता, माता बोले जाते है
जिस ओर देखो उस, ओर दिखती है भीड़, 
मन में कामना लिए, ध्यान किये जाते है!!

पल में ही अपने को ,सब भूल जाते यहाँ ,
पूजन में लीन सभी , कष्ट भूल जाते है ! 
जान पड़ता हैं आज, हुए सभी भक्तिमय , 
छोड़कर काम धाम, देखो चले आते है !!

Comment by ram shiromani pathak on April 12, 2013 at 9:49pm

आदरणीय भाई केवल जी आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक  आभार !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service