For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                        

               अभिलाषा

मेरी अब  यही एक अभिलाषा है
कि दूर क्षितिज में जाने से पहले
इन बेनाम-लावारिस कविताओं का
नामकरण करता चलूँ ।
 
सुनो, तुम्हें न्योता भेजूँ तो
आओगी न ?
 
तुम्हारे आने की प्रत्याशा में मैं
फूला नहीं समाऊँगा, और
एक बहुत सुन्दर मंडप सजाऊँगा,
वैसा ही जैसे बचपन में कभी
तुमने सजाया था,
खेल-खेल में जब तुमने
नाम मेरा अपनाया था ।
 
लेकिन अब इतने वर्ष उपरान्त
मेरे पास हवन के लिए सामग्री
और कमंडल में पानी
बहुत कम बाकी है ।
 
आते-आते तुम उसी नदी से प्रिय
कुछ पानी और ले आना
वहीं जिस नदी पर तुमने कभी
सूर्य-नमस्कार के बाद
दूधिया किरणों के सम्मुख
मेरे लिए मनोती माँगी थी
और मैनें झट तुम्हारे ओंठों पर
अपना हाथ रख दिया था ।
 
और हाँ, सामग्री के लिए
ले आना कुछ सूखी फलियाँ
नदी के पास उसी खेत से तुम
जिसकी ऊँची-लम्बी फ़सल में हम
झाड़ियों में छिप जाते थे
और जहाँ पर मैंने
तुम्हारे पैर में चुभा काँटा, स्नेह से
एक और काँटे से निकाला था,
और तुम देर तक मेरे कंधे का
सहारा लिए खड़ी रही थी।
                ---------
                                            -- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on April 13, 2013 at 8:42am
आदरणीय निकोर महोदय सादर अभिवावदन स्वीकारें।
इस भावपूर्ण आह्वाहन में एक लम्बे वियोग की प्रेममय कसक स्पष्ट गोचर हो रही है जो प्रेम की सततता को प्रतिबिम्बित कर रही है!
अद्वितीय अभिव्यक्ति!
सादर
Comment by vijay nikore on April 12, 2013 at 7:26pm

आदरणीय राम जी:

 

//दिल से निकले सुन्दर भाव //

कविता की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on April 12, 2013 at 1:45pm

आदरणीया प्राची जी:

 

// सुकोमल भाव लिए प्रवाहमय सुन्दर प्रस्तुति...  स्वप्नों की ओर  //

 

आपसे मिली सराहना मेरे लिए उपहार है, प्राची जी। हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय

Comment by vijay nikore on April 12, 2013 at 1:41pm

आदरणीय बृजेश जी:

 

//बहुत भावुक निमंत्रण और आहवाहन! अप्रतिम! दिल में दूर तक गहरे पैठती हुई।//

 

इस रचना को अप्रतिम कहकर आपने मुझको जो मान दिया है

उसके लिए मै आपका आभारी हूँ।

 

स्नेह बनाए रखें।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on April 12, 2013 at 1:34pm

आदरणीय संदीप जी:

 

//बहुत ही भावपूर्ण रचना...दिल मे बहुत गहरे उतरी है ...इक इक शब्द मे आपने दिल उतार दिया है//

 

रचना के भाव पाठक को छू जाएँ, यह लेखक के लिए वरदान है।

इतनी सराहना के लिए मेरा हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by वेदिका on April 11, 2013 at 7:36pm
आदरणीय विजय निकोर जी!
तुम्हारे पैर में चुभा काँटा, स्नेह से
एक और काँटे से निकाला था....
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,,, हार्दिक बधाई
Comment by vijayashree on April 11, 2013 at 7:12pm

और हाँ, सामग्री के लिए

ले आना कुछ सूखी फलियाँ

नदी के पास उसी खेत से तुम

जिसकी ऊँची-लम्बी फ़सल में हम

झाड़ियों में छिप जाते थे

और जहाँ पर मैंने तुम्हारे पैर में चुभा काँटा, स्नेह से

एक और काँटे से निकाला था,

और तुम देर तक मेरे कंधे का

सहारा लिए खड़ी रही थी।

 

 अन्तःमन से निकली  भावपूर्ण अभिव्यक्ति

 हार्दिक बधाई

 

 विजयाश्री

 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 11, 2013 at 7:06pm
आदरणीय विजय निकोर जी!
अतुकांत कविता की मुझे समझ नहीं है।
क्योंकि मेरे विचारों में ज्यादा उलझ नहीं हैं॥
मैं सपाट बयानी ही जानता हूँ।
जिन्हें अपने अधकचरे छंदों में ढालता हूँ॥
तथापि भावुकता की जिस गहराई से आपने शब्दों को चुनकर पिरोया है।
उसीसे मेरा मन रोया है॥
पता नहीं किस समुद्र में डूबकर आप लिखते हैं।
जो अपनी कविताओं में इतने उन्नत भाव भरते हैं॥
जो तुक व छंद हीन होने के बाद भी जंचती हैं।
किसी अनजान लोक की तरफ बरबस खींचती हैं॥
और हम आपके उन्हीं शब्दों के रथ पर बैठकर उड़ चलते हैं।
जहाँ हमें आपके अनुभवों के मोती मिलते हैं॥
हृदय गदगद हो वाह वाह कहता है।
आखिर एक वरिष्ठ गुरू गुरू ही रहता है॥
सादर
Comment by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 6:09pm

मन के हर परत को छूती आपकी रचना बहुत ही अच्‍छी लगी, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 11, 2013 at 5:28pm

भावपूर्ण अभिव्यक्ति |  आपकी रचन्नाए अंतर्मन के सुनहरे पलों के भाव संजोये ही होती है, और अंतर्मन से 

लोखी रचना सुन्दर सुन्दर रंग समाते है, हार्दिक बधाई श्री विजय निकोरे जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service