For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आधी अधूरी सी ये ज़िन्दगी

तमन्नाओं से भरी हुई  

जिज्ञासाओ को छुती हुई 

पल की खबर नही 

ठूंठ की तरह खड़ी हुई

आज का पता नही

कल का ठिकाना नही

चल रही बेबाक सी 

किसी का खौफ नही

बनती बिगड़ती फिर सवंरती

कैसी खोखली ये ज़िन्दगी 

आगे दौड़ने की होड़ में रह गई पीछे 

ताश के पत्तों सी बिखरी हुई 

आधी अधूरी सी ये ज़िन्दगी 

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aarti Sharma on April 16, 2013 at 10:20pm

आदरणीय विजय भाई एवं आदरणीय केवल जी,बसंत जी,संदीप जी,पाठक जी,श्याम जी,प्रदीप सर,ब्रिजेश जी,अशोक सर,बागी सर,योगी जी,राजेश जी,एवं प्रिय प्राची जी और राजेश मैंम ..आप सभी का रचना सराहने हेतु कोटि कोटि धन्यवाद...अपना स्नेह इसी तरह बनाये रखिये एवं समय समय पर उचित मार्गदर्शन करिए...आभार 

Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 5:49pm

जीवन के खालीपन को बताती अच्‍छी रचना के लिए बधाई

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 10:59am

जिंदगी को अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से परिभाषित  हैं ! बहुत सार्थक और सुन्दर बात कही है आपने आदरनीय आरती शर्मा जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 9:52am

जिन्दगी तेरे रूप अनेक, विभिन्न रूपों को बहुत ही करीने से अभिव्यक्त किया गया है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया आरती जी ।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 16, 2013 at 9:36am

ज़िंदगी के विविध रंग.... कभी उल्लास तो कभी सूनापन 

विषमताओं से बेज़ार ज़िंदगी की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई आ० आरती जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:43pm

जिस राह ले जाओ उसी राह चल देती है जिंदगी. आदरणीया आरती जी सुन्दर रचना प्रस्तुति.

Comment by बृजेश नीरज on April 15, 2013 at 8:00pm

बहुत सुन्दर!

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 6:22pm

आदरणीया आरती जी:

 

// कैसी खोखली ये ज़िन्दगी

आगे दौड़ने की होड़ में रह गई पीछे

ताश के पत्तों सी बिखरी हुई

आधी अधूरी सी ये ज़िन्दगी//

बहुत ही मार्मिक भाव हैं। प्रस्थितियों में उलझे हम सभी मन को कितना सुदृढ़ करते हैं,

फिर भी रह-रह कर कुछ बिखरे टुकड़ों को ख़यालों में आने से रोक नहीं पाते, उन्हें ठेल

नहीं पाते।

 

सुन्दर भावाभिव्यक्ति। बधाई। 

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 15, 2013 at 4:36pm

जिंदगी के कई रूप, 

बिखरी जिंदगी 

संवरती जिंदगी 

बधाई,

आदरणीया आरती जी 

सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on April 15, 2013 at 4:24pm

bahot khoob.....................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
7 minutes ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service