सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज
हुआ यकायक मुझे अंदेशा
भेजा उसने कोई संदेशा
नेह नीर बिना शुष्क हुई थी
देह प्रीत बिना रुष्ट हुई थी
लिपट पवन संग हिय तरु की डारि हिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
आह्लादित मन लहका- लहका
प्रीत उपवन है महका- महका
मिले गले जब भ्रमर औ कलिका
हया दीप संग जलती अलिका
विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
जाने क्यों ये मन भरमाया
खुदी में ढूँढू उसका साया
इत - उत देखूं लगे वो आया
झट चौखट पे दीपक जलाया
सागर मन मध्य मौजों की खुशियाँ रिली आज
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज
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Comment
आदरणीय लक्ष्मण जी आप सही कह रहे हैं इन मेलों में ऐसे गीतों की बहार रहती है ऐसा ही कोई लोक गीत सुना था जिसकी धुन पर ये लिखा गया आपकी आत्मीय टिपण्णी उत्साह वर्धन करती है स्नेह बनाए रखिये हार्दिक आभार आपका |
आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपकी आत्मीय टिपण्णी उत्साह वर्धन करती है स्नेह बनाए रखिये हार्दिक आभार आपका
श्याम नारायण वर्मा जी आपकी प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
प्रिय राम शिरोमणि पाठक आपको गीत रुचिकर लगा आपको हार्दिक आभार
सुन्दर लोक गीत इस मौसम के अनुकूल विशषकर राजास्थान में गणगौर के मेले में जो अभी 12 अप्रैल को ही मनाया गया है
गाव गाव से लोग जयपुर आते है झुला झूले है तब घूमते झुण्ड में गाते मदमाते है | बधाई
सबके आँगन में ऐसा हि हो जाये
बहुत सुन्दर भाव लिए गीत.
आनंद आ गया
सादर बधाई.
आदरणीया राजेश कुमारी जी
आदरणीया राजेश जी,
लोकगीत में मात्रिक गेयता के क्या नियम होते हैं , मुझे इसकी जानकारी नहीं है..आदरणीया.
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ..................... |
प्रिय प्राची हार्दिक आभार आपको गीत पसंद आया वास्तव में यह एक लोक गीत की लय पर आधारित है कहीं कहीं गायन में मात्रा को गिराकर पढ़ा गया है जैसे नेह नीर बिना को बिन पढ़ कर गायेंगे ऐसे ही दो तीन जगह है मेरी एक मित्र ने गाकर भी सुनाया था फिर भी आपको कहीं ज्यादा खटक रहा है तो आपके सुझावों का इन्तजार है |
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर भाव !हार्दिक बधाई
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