एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,
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(१) मदिरा सवैया =
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मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!
भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!
त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ उतिरात चली !!
आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!
(२) मदिरा सवैया =
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भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ तुम का !!
खॆल नसाइ दिहौ सब मॊहन,बॊलहु हॊंठ सियॊ तुम का !!
गॆंद हमारि हमैं अब चाहइ,मीत अनीति कियॊ तुम का !!
(३) मत्तगयंद सवैया =
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दॆब उलाहन जाइ घरै हम, मारइ तॊहि यशॊमति मैया !!
नंदहुँ मारहिँ दॆंहि धपा-धप, पींठ उँघारि करैं गति भैया !!
बाँधि धरैं रसरी दुहुँ हाँथन, पाँव कसैं जसि नाठर गैया !!
या लकुटी जब पींठ परै सुन,बॊल उठैं जियरा तब दैया !!
कवि : "राज बुन्दॆली"
१८/०४/२०१३
Comment
आदरणीय राज सर जी सादर प्रणाम
बहुत ही उत्तम छंद रचना की है आपने उसके लिए आपको साधुवाद
कवि राज जी आपने तो एक दम मथुरा वृन्दावन में पंहुचा दिया बेहद खूबसूरत छंद रचे हैं मत्तगयन्द के तो क्या कहने अति सुन्दर बहुत- बहुत बधाई आपको
गीतिका 'वेदिका' जी ,,, सादर नमन,,,,आप सबके इस अविस्मरणीय स्नेह को,,, मैं मूलत: वीर रस का रचनाकार हूँ और कवि-सम्मेलनो में ऒज की रचनाओं के लिये ही जाना जाता हूँ,,लेकिन इस मंच ने मुझे छन्द विधा में लिखने हेतु प्रेरित किया और बस यही कुछ तीन चार महीने से छन्द-लेखन का प्रयास कर रहा हूँ, आप लोगो के प्रोत्साहन से बहुत ऊर्जा मिलती है,,,मैं मंच का एवं आप सभी मित्रों का ऋणी हूँ,,,,,आप सभी को दिल से आभार एवं सादर नमन,,,,,,,,
आपका स्नेहाकांक्षी,,,
कवि - राज बुन्देली,,,,,,,,
वाह वाह वाह आदरणीय कविराज बुन्देली ,,,आपके द्वारा रचित छंदों की शोभा तो देखते ही बनती है ....बहुत बहुत धन्यवाद आपकी अनमोल कृति को ओ बी ओ के माध्यम से प्रस्तुतिकरण देकर !
Er. Ganesh Jee "Bagi" जी भाई साहब ,,,,जब आप जैसे गुणी-जनॊ के मन को रचना भा जाती है तो मन गद-गद हो जाता है , और कई गुना लेखन की ऊर्जा बढ़ जाती है आप सुधी-जनो की प्रतिक्रिया पढ़कर , मै नत-मस्तक होकर नमन करता हूँ आप के एवं मंच के इस स्नेह को,,,,,,आपका बहुत बहुत आभार मेरे इन शब्दो को कंचन-काया बनाने हेतु,,,,,,
,, धन्यवाद,,,,,,,,,,,
आपका स्नेहाकांक्षी,,,
कवि - राज बुन्देली,,,,,,,,
सवैया पर जब आप काम करते हैं तो रचना की खूबसूरती देखते ही बनती है, आप से नवांकुर बहुत कुछ सीख सकते हैं, बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई आदरणीय कविराज ।
ram shiromani pathak जी भाई साहब ,,,,,,बहुत बहुत आभार आपका इस स्नेह के लिये धन्यवाद,,,,,,,,,,,
बाँधि धरैं रसरी दुहुँ हाँथन, पाँव कसैं जसि नाठर गैया !!
या लकुटी जब पींठ परै सुन,बॊल उठैं जियरा तब दैया !!//////
भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ तुम का !!
आदरणीय राज भाई मनमोहक रचना ////क्या बात है //हार्दिक बधाई आपको
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