बस आस तुम्हारी बाकी है
इस आंख में आंसू बाकी है
जब जब झरनों सी तरूणाई
आ आकर फिर लौटी है
तुम बन करके शीत चुभन
याद तुम्हारी लौटी है
मीत मिले दिन बरसों के
बात तुम्हारी बाकी है
वो दिन वो सुमधुर मिलन
अहसास अभी बाकी है
न जाने कितनी बार यहां
चांदनी आकर लौटी है
बरसों से बंद दरवाजे की
सांकल फिर से खटकी है
आ जाओ मन प्राण बसे
प्यास अब भी बाकी है
टूटे न जीवन डोर कहीं
सांस अब भी बाकी है
- बृजेश नीरज
Comment
आदरणीय बृजेश जी ,
नवगीत विधा मैं भी अभी सीख ही रही हूँ... इस प्रकार की सार्थक परिचर्चा अवश्य ही ज्ञान को विस्तार देगी, ऐसी मंगल कामना है..
आप द्वारा सीमाजी के आलेख से उद्धृत उदाहरण की मात्रा गणना पर एक बार गौर कीजिये , फिर आगे चर्चा करते हैं
बँटवारा कर दो ठाकुर। ………………………….…14
तन मालिक का धन सरकारी ……………………..16
मेरे हिस्से परमेसुर।…………………………….…..14
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ ………………………….16
सड़कें दे दो / झंडों को ……………………..............14
पर्वत कूटनीति को अर्पित …………………………..16
तीरथ दे दो /पंडों को। …………………………….…14
खीर खांड ख़ैराती खाते ……………………………...16
हमको गौमाता के खुर……………………………….14
सब छुट्टी के दिन साहब के ……………………………16
सब उपास /चपरासी के ……………………………….14
उसमें पदक कुँअर जू के हैं …………………………..16
खून पसीने /घासी के ………………………………..14
अजर अमर श्रीमान उठा लें ……………………………….16
हमको छोड़े क्षण भंगुर//…………………………………..14
सादर.
मेरी रचना मेरे विचार से आप द्वारा उल्लिखित तीनों नियमों का पालन करती है। यदि त्रुटि है तो कृपया मार्गदर्शन प्रदान करने का कष्ट करें।
मैं यह फिर से स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने अपना यह प्रयास सीमा जी का लेख पढ़कर ही किया था। यहां पर सीमा जी द्वारा अपने लेख में उल्लिखित एक अन्य नवगीत को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं।
//बँटवारा कर दो ठाकुर।
तन मालिक का धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर।
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो
झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो
पंडों को।
खीर खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास
चपरासी के
उसमें पदक कुँअर जू के हैं
खून पसीने
घासी के
अजर अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर//
यहां पर चूंकि जिक्र हो ही गया है तो एक अन्य विधा जिसका जिक्र आपने किया है गीत और नवगीत में अंतर भी स्पष्ट कर दें तो मेरे लिए सहायक होगा।
सादर!
१. नवगीत में एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होने चाहिये।
२. अंतरे की अंतिम पंक्ति मुखड़े की पंक्ति के समान (तुकांत) हो जिससे अंतरे के बाद मुखड़े की पंक्ति को दोहराया जा सके।
३. नवगीत में छंद से संबंधित कोई विशेष नियम नहीं है मगर पंक्तियों में मात्राएँ संतुलित रहे जिससे गेयता और लय में रुकावट न पड़े।
४.नवगीत को छन्द के बंधन से मुक्त रखा गया है परंतु लयात्मकता आवश्यक है, इसलिए लय को अवश्य ध्यान में रखकर लिखे और उस लय का पूरे नवगीत में निर्वाह करें।
आदरणीय प्राची बहन,
दरअसल मैंने ओ बी ओ पर जिस लेख को पढ़ा उसमें मात्राओं के बंधन का कोई जिक्र नहीं था। इसलिए मैंने मात्राओं की गणना नहीं की।
उसी लेख में प्रस्तुत एक उदाहरण का यहां जिक्र करना चाहता हूं।
//हर चेहरा चुगली करता है
छिपे इरादों की
भीतर के मरुथल
बाहर के
सावन भादों की//
वहीं आगे चर्चा को बढ़ाते हुए सीमा जी ने टिप्पणी में लिखा है-
//नव गीत तो शिल्प प्रधान नहीं है गीत में गेयता का तत्व ही अनिवार्य है | छंद संबंधी कोई विशेष आग्रह नहीं है ,तुकांत शब्दों का कोई विशेष बंधन नहीं है , झ के साथ ज का तुक चलेगा श के साथ ष मान्य है//
उक्त के संदर्भ में आपसे अनुरोध है कि कृपया नवगीत के इससे इतर यदि शिल्पगत नियम हैं तो उनकी जानकारी प्रदान करने का कष्ट करें जिससे कि आगे मैं इस विधा में अपने प्रयास को और सुधार सकूं।
सादर!
प्रिय के इंतज़ार में , आने की आस में व्याकुल मन की दशा की सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई
आदरणीय बृजेश जी गीत लेखन पर सद्प्रयास के लिए बधाई , किन्तु अंतरे व मुखड़े की मात्राओं में कोइ साम्य नहीं महसूस होता, गीत और नवगीत में मात्रा कितनी लेते हैं इसकी स्वतंत्रता होती है..पर अंतरे व मुखड़े की मात्राएँ सामान होनी चाहियें
गौर कीजिये ,
बस आस तुम्हारी बाकी है...............१७
इस आंख में आंसू बाकी है.....................१७
जब जब झरनों सी तरूणाई.........१६ (तरुणाई शब्द है )
आ आकर फिर लौटी है...............१४
तुम बन करके शीत चुभन........१४ तुम के स्थान पर शायद तब लिखना सही होता
याद तुम्हारी लौटी है.........१५
फिलहाल इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..सादर.
आदरणीय केवल जी आपका आभार!
आदरणीय भ्रमर जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
आ0 बृजेश नीरज जी, अतिसुन्दर और सुमधुर गीत। बधाई स्वीकारे। सादर,
सुन्दर नव गीत वृजेश भाई ...कोमल भाव ..
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