For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा 
------
रिश्तों का खून 
पडोसी का धरम 
तेज नाखून .
----
अभी तो थी वो 
किलकारियां थमी 
रो रही थी वो !!!!!!!
--
बढ़ता धर्म 
कम होता विश्वास 
शापित कर्म 
-----
बचपन में 
खिलौने खेले कैसे 
डर मन में ...
----
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट दिखाते 
ले गए साथ 
-----
जरूरत है 
देह दहक रही 
क्यूँ आफत है ?
---
अँधा नगर 
चौपट लोकशाही 
मचा  कहर .
-----
तन्हाईयां  हैं 
यादों की भीड़-भाड़ 
रुबाईयां है 
----
यातना -वन 
जिसका जैसा मन 
खुश -चमन 
------
बेड़ियाँ टूटे 
सामाजिक जंजीरें 
बेटियां छूटे 
----------
अरे! गुडिया 
हरी -हरी चूड़िया 
उडी चिड़िया 
----
परछाईयां 
बिटिया मां से जुदा 
शहनाईयां 
-------
कुछ तो करो 
किसान मर रहा 
खेत ही चरो 
------
जुबान बंद 
तेवर रिश्वत के 
जुगाड़चंद 
---
अविनाश बागडे 

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on May 10, 2013 at 8:13pm

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2013 at 1:17pm

सामयिक विषय वस्तुओं पर विविधता लिए बहुत उत्कृष्ट हायकू ...

हार्दिक बधाई आ० अविनाश बागडे जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2013 at 9:37am

आदरणीय अविनाश जी सादर सामयिक परिस्थितियों पर सुन्दर हाइकु लिखे हैं. सभी बढ़िया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:08pm
बहुत सुन्दर आदर्णीय...बधाई हो
Comment by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:39pm

चोटे  तीर मगर घाव कितने गम्भीर . सादर /कुंती .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:43pm
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट दिखाते 
ले गए साथ
आदरणीय अविनाश जी 
सादर बधाई 
Comment by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:36am
विविध पहलुओं के समूह को हाइकू में कलात्मकता से तराश दिया आपने आदरणीय। अन्तिम हाइकू मुझे बहुत अच्छा लगा।
आदरणीय बृजेश सरजी की बात से सहमत हूं कि 'खेत ही चरो' को स्पष्ट करें महोदय। निवेदन करना चाहूंगी श्रीमान् कि
'खुश चमन'
में शायद 'खुश' की जगह 'वैसा' ज्यादा उपयुक्त होता!
प्रभावशाली सुंदर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:36am

अविनाश जी बहुत सुन्दर हाइकू! समसामयिक परिस्थितियों पर बहुत अच्छा कटाक्ष। बधाई स्वीकारें।
ये दो हाइकू मुझे स्पष्ट नहीं हो सके कि आप क्या कहना चाहते हैं?

//सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा//
 प्रथम दो पंक्तियां तीसरे से तारतम्य नहीं बिठा पायीं। 'आदमी गन्दा' यह तो स्पष्ट है लेकिन 'सूरज चंदा धरती हवा पानी' का क्या?
//कुछ तो करो 
किसान मर रहा 
खेत ही चरो//

'कुछ तो करो किसान मर रहा है' यहां तक तो ठीक है लेकिन 'खेत ही चरो' का आशय? 'कुछ तो करो' आहवाहन है 'खेत ही चरो' निर्देश?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Jul 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service