आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो
जब चाहे जी
अपना लेते हो
जब चाहे जी
ठुकरा देते हो
कैसे लिखूं
तुमको पतियां
तुम वादे
झुठला देते हो
आधी रात के ................
या देवी का
जयघोष तो करते
फिर क्योंकर
चुभला देते हो
अपने छत पर
बाग लगाकर
कलियों को
दहला देते हो
आधी रात के ................
कहती हूं जो
तुमको प्रियतम
हक फौरन
जतला देते हो
और करूं जो
हक की बातें
जी मेरा
मितला देते हो
आधी रात के ................
जाने कितनी
जंजीरों में
पग मेरे
उलझा देते हो
घनघोर घटा को
मेरा आंचल
तुम कैसे
दिखला देते हो
आधी रात के ................
तब जब करूणा
डूब मरी है
तुम अक्सर
मुसका लेते हो
जाने कैसे
किस मंतर से
तुम सबको
फुसला लेते हो
आधी रात के ................
नए बहाने
रोज बनाकर
तुम मुझको
धुंधला देते हो
बौने मानव !
और कहूं क्या
तुम रिश्ते
गंदला देते हो
आधी रात के ................
(पूर्णतया मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय राजेश जी,
प्रस्तुत रचना का मर्मस्पर्शी कथ्य बिल्कुल स्त्री मन के साथ नितप्रति होते छलावे को प्रस्तुत करता है.. हर बंद में उसके छले जाने का क्रंदन है... इस संवेदनशील लेखन के लिए हार्दिक बधाई.
आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो......
जाने कितनी
जंजीरों में
पग मेरे
उलझा देते हो
घनघोर घटा को
मेरा आंचल
तुम कैसे
दिखला देते हो
आधी रात के ..............waah ..bahut sundar ..pravahmay rachnaa ....bahut bahut badhaai ..........
किस मंतर से
तुम सबको
फुसला लेते हो
आधी रात के .......
विजय निकोर जी, आपका हार्दिक आभार
भावाभिव्यक्ति अच्छी है।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय कुंति जी, बसंत नेमा जी, प्रदीप जी, लक्ष्मण जी एवं रक्ताले साहब, आप सबकी उपस्थिति एवं हर्षकारी प्रतिक्रिया आगे की रचनाओं को बड़ा बल प्रदान करेगी, सादर
आदरणीय सीमा जी, आपने बिलकुल ठीक पकड़ा है रचना पोस्ट करने में हड़बड़ी की बात स्वीकार करता हूं, इसे और पुष्ट किया जा सकता था परंतु मन किसी और विषय पर केंद्रित हो गया, क्षमा चाहता हूं, अगली बार ध्यान रखूंगा, सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी एवं विनय जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार
जिसका कद किसी तरह से भी फिट न बैठे उसे बोने मानव कह देना बिलकुल ठीक है. सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश जी.
मानव की ये फिदरत है की वह अपने मतलब के खातिर बहाने बनाकर क्षणिक ख़ुशी देता है | इसको बखूबी शब्दों पिरोकर
प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा जी | एक बात "जब चाहे जी" की जगह यदि "जब जी चाहे" लिखा
जावे तो ज्यादा उचित रहेगा | सादर
नए बहाने
रोज बनाकर
तुम मुझको
धुंधला देते हो
बौने मानव !
और कहूं क्या
तुम रिश्ते
गंदला देते हो
भाव प्रधान सुन्दर रचना हेतु बधाई, आदरणीय झा साहब जी
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