मां!
आंचल-आशीष, प्यार-दुलार
दया-दान, क्षमा-उपकार है।
सहज-प्रकृति-अभिव्यक्ति
सृष्टि-दृष्टि-संस्कार है।
माया-मोह, ममता-मनमोहनी
सानिध्य-सहिष्षुण-सद्व्यवहार है।
मां!
श्रृध्दा-गरिमा, प्रेरक-उध्दारक
धूप-छांव, सर्दी-गर्मी-बरसात है।
लक्ष्मी-सरस्वती, सीता-सावित्री
दुर्गा-शारदा, काली-कपाली-चामुण्डा है।
ज्योति-ज्ञान, विचारक-संवाहक
आचार-विचार, शब्द-उच्चारण है।
मां!
पूजा-पाठ, आस्था-सद्गुरू
पतित-पावनी गंगा-जमुना-गोदावरी है।
हां! यही भव-भय-ताप-शाप से
मुक्तिदायनी-संकटमोचक-जगतारणी है।
धर्म-कर्म, सत्य-अक्षुण्ण,
जन्म-मृत्यु , मोक्ष-स्वर्ग-गोलोक है।
मां-दुर्गा
मां-कौशल्या
मां-यशोदा है।......जय मां! जय जय मां!!!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्ताले सर जी, आपका आशीष पाकर मन खिल गया। किन्तु सरजी, मैनें कोई प्रयोग नही किया है। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
सुन्दर रचना आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर बधाई स्वीकारें. एक नवीन प्रयोग ही कहूंगा. बहुत बढ़िया.
आ0 मनोज जी, आपके प्यार व उत्साह ने मेरा मान बढ़ाया। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 लड़ीवाला जी, मां का असीम प्यार, पावन रूप, श्रध्दा और आशीष हम सभी को खूब भाता है, फलता है। तो हमें भी मां को सदैव दिलों में रखना चाहिए। आपके समर्थन और आशीष से मैं धन्य हुआ। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 श्याम नारायण जी, आपके समर्थन से मैं धन्य हुआ। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राजेश कुमारी जी, मां का पावन रूप, श्रध्दा और आशीष हम सभी को खूब भाता है, फलता है। तो हमें भी मां का सदैव उतना ही ध्यान रखना चाहिए। आपके समर्थन से मैं धन्य हुआ। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आ0 कुन्ती जी, मां का पावन रूप, श्रध्दा और आशीष हम सभी को खूब भाता है, फलता है। तो हम क्यों न मां का सदैव ध्यान रखें। इसी निवेदन के साथ आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
माँ के चरणों में स्वर्ग धरा
माँ के आँचल में प्यार भरा - माँ की गुण गाथा में जितना लिखा जाए कम है | प्रस्तुति पर बधाई
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
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