!!! मां !!!
मां -एक मात्र ऐसी स्तम्भ है,
जिस पर सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड टिका है।
और हम अज्ञानी-अहंकारी-विकारी,
मां का अनादर करते है-
लज्जित करते है।
हम इस ब्रहमाण्ड को परे रख कर
स्वयं को सर्वज्ञ - अभिन्न,
विधाता बने फिरते है।
सुखी-स्वस्थ्य-सम्पन्न होने की चाह,
दया-मुक्ति-परमार्थ होने की आश,
धिक-धिक-धिक है हमारी सोच।
धिक्कार है! ऐसा आत्मबोध!
आह! अकेला ही रह जाएगा,
मां को छोड़...
और मां!
फिर भी मां है।
अन्त समय में भी मां का प्यार,
सात गज का आंचल है,
दो गज की गोद है,
थपकी देती तन की माटी
चिर निन्द्रा मे निर्विध्न-
शांति से देती है..... पनाह।
धन्य है मां !
तू धन्य है-
मैं तेरा अपराधी हूं.........हे! मां!!!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 वंदना जी, आपके उत्साहवर्धन से मां के ममता और स्नेह को दृढ़ता मिली है। आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 रक्ताले सर जी, सादर प्रणाम! मां के त्याग, प्यार और श्रध्दा को आपका स्नेह और आशीष जल अभिसिंचित कर रही है। आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 मनोज शुक्ला जी, मां के त्याग ओर प्यार को आपका समर्थन मिला रचना सफल हुई। आपका हार्दिक आभार। सादर,
धरती माँ के सम्मान में लिखी गयी सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल प्रसाद जी.
आदरणीया, कुन्ती जी, एक मां के कर्ज को संसार के समस्त प्राणी मिलकर भी अदा नहीं कर सकते हैं। मैनें तो मात्र मां के एहसास को बस रोशन भर किया है। आपने अपने आशीष वचन में वह सब कुछ कह दिया जो एक पुत्र धर्म को करना चाहिए। आपकी श्रध्दा और दिशा को नतमस्तक नमन है और आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आ0 कुशवाहा जी, आपके स्नेह और आशीष से मां के प्रति श्रध्दा को और अधिक बल मिला है। आपका तहेदिल से आभार। सादर,
धन्य है आपकी कलम भी , केवल जी , जो माँ को श्रद्धा सुमन अर्पण किये है .....एक माँ को एक ही सपूत काफ़ी है ./ सादार / कुंती .
priy keval prasad ji
sundar bhaav ,prastuti hetu sasneh badhai.
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