!!! लखनऊ शहर !!!
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!!
नवाबी सुरूर,
बागों की हूर
हुस्न औ शबाब,
हजरत आदाब।
अमनों शहर मजहबी सजदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!1
मस्जिद आजान
मंदिर रस गान
अमृत औ नीरज
साहित्य धीरज।
शायर कवि कहते बेपरदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!2
भूल भुलईया
दिलकुशा छइयां
गंजो का गंज
बागों का ढंग।
यहां हरियाली रहती फिदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!3
गलियों की महक
अहातों की चहक
पतंगी जुनून
फाखता सुकून।
आन बान शान शौकत अदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!4
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 रक्ताले जी, प्रणाम! आपके स्नेह और आशीश बचनों के लिए तहेदिल से हार्दिक अभिवादन व बहुत बहुत आभार। सादर,
वाह! लखनऊ शहर की फिजाओं का बहुत सुंदर वर्णन करती सटीक प्रवाह युक्त रचना मन मोहक है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल प्रसाद जी.
आदरणीय गुरूवर सौरभ सर जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! जी, लखनऊ है ही ऐसा शहर। जी सर, सक्सेना जी को मैं तो अच्छी तरह से जानता हूं। वे कविताएं तो नहीं लिखते थे लेकिन उनका गद्य भी किसी कविता से कम नहीं हैं। उनकी शैली, खुशमिजाजी, सहृदयी और वे स्वयं मिलनसार के साथ ही साथ हिन्दी के उत्थान में सदैव तत्पर और चिन्तनशील पुरूष हैं। उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही है। उनके सामने मैं उम्र और लेखन दोनों मे ही नवजात था। 1981 से हिन्दी के अध्यापक श्रध्देय स्व0 शुखदेव प्रसाद शुक्ल जी ने नींव डाली थी, इस समय मैं इण्टर में पढ़ रहा था। इसी वर्ष मेरे पिता जी के इन्तकाल से मैनें काफी उतार ही उतार देखे। जी, उनके लेखों का मुझपर बहुत असर है भले ही मैं उनके जैसा नहीं लिख पाता हूं। उनकी रचनाएं हमारी प्रेरणा स्रोत हैं। वो शायद मुझे चेहरे से पहचान लें लेकिन मेरा नाम नहीं जानते हैं। हां! मैं अक्सर उनके निवास के सामने से निकलता हूं। सदैव ही याद ताजा हो आती है। अब तो वे मुम्बई में ही रहते हैं, जबकि वे इसके शक्त विरोधी भी रहे हैं। जब से उन्होने दूरदर्शन में काम किया, इरादा बदल गया और आज उन पर पूरे देश को गर्व है। उनका नखलऊ कहने का अंदाज भी निराला था। एक बात और आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि यह ‘नखलऊ‘ शब्द कानपुर के लोगों की देन है। आपने इस रचना के माध्यम से बहुत सुन्दर बात कही जो आम जन का प्रतिनिधित्व करती है। हां! यदि अब कभी भी उनसे मुलाकात होगी तो कोशिश करूंगा कि आपसे बात करा सकूं। आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीया कुन्ती जी, सुप्रभात! जी, लखनऊ है ही ऐसा शहर। इसके विषय में जितना भी लिखें कुछ न कुछ रह ही जाता है। आपको गीत पसंद आया। मैं आपका हृदय से आभारी हूं। आपकी यात्रा मंगलमय हो, की शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार। सादर,
रचना तो नखलऊ की होनी थी.. आपने लखनऊ पर ठोंक मारी.
आप केपी सक्सेनाजी से अवश्य मिल लें. अगर मिल चुके हों तो आपको मेरा हार्दिक नमस्कार जो आप उनको पहुँचा देंगे. मैं श्रद्धेय सक्सेनाजी का बहुत भयंकर फैनों में से हूँ. मगर मिला कभी नहीं हूँ.
शुभं
केवल जी , आपने लखनऊ पर बहुत ही सुंदर लिखा है......हम (मैं और डाक्टर मुकर्जी)अपनी लम्बी यात्रा समाप्त कर जल्दी ही आपसे मिलेंगे . सादर / कुंती .
आ0 बृजेश नीरज जी, हां! भाई जी, मैं लखनऊ, गोमती नगर में रहता हूं। इससे पहले भी एक ’महात्मागांधी मार्ग से कालीदास मार्ग तक’ रचना पोस्ट कर चुका हूं। आपका तहेदिल से शुक्रिया और बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 गीतिका वेदिका जी, आपका हार्दिक स्वागत के साथ-साथ तहेदिल से शुक्रिया और बहुत-बहुत आभार। सादर,
केवल भाई आज पता चला कि आप लखनऊ में रहते हैं। इस कसीदे के लिए आपको बधाई।
‘मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं’…………. जो लखनऊ न आए हों वो यहां तुरन्त पधारें।
वाह केवल प्रसाद जी!
आपने तो यहीं बैठे बैठे लखनऊ की यात्रा करा दी
बहुत खूब
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