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मृत्युंजयी

रणभेरी बज उठी प्रिय!,

मैं मस्तक तिलक लगाऊॅ।

भारत मां को स्वतंत्र कराया,

मिलकर सोलह श्रृंगार किया।

प्यारी सद्भावना देवी को,

मैं श्रध्दा सुमन चढ़ाऊॅ।।--- रणभेरी....

देश की खातिर जिये अभी तक,

क्षमा-दान सब उत्सर्ग किया।

आ गई परीक्षा की घड़ी,

मैं शौर्य गीत ही गाऊॅ ।।--- रणभेरी...

दुनियां में अमन चैन रखने को,

सीटीबीटी बहिष्कार किया ।

परमाणु सम्पन्न देशों को,

मैं ठेंगा ही दिखलाऊॅ।।--- रणभेरी...

विकास पथ पर हुए अग्रसर,

वैरी को़ क्यों कर भायेगा?

छेड़ दिया अघोषित युध्द,

मैं आप्रेशन विजय पर जाऊॅ।।-- रणभेरी...

शान्ति-शक्ति को बना चुनौती,

मूर्खता का परिचय दिया।

हमें इच्छा मृत्यु वर मिला,

मैं मृत्युंजयी कहलाऊॅ।।--- रणभेरी...

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 5, 2013 at 8:56pm

आ0 रक्ताले जी, जी! आपने बिलकुल सही कहा। यह गीत 1999 में कारगिल युध्द के समय लिखा था। आज के परिवेश में सही लगी तो पोस्ट कर दी। ’आप्रेशन विजय’ अभियान का नाम था। इसीलिए इसे जैसे का तैसा लिखा था। आपका आशीर्वाद पाकर मैं धन्य हो गया। आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:17pm

विकास पथ पर हुए अग्रसर,

वैरी को़ क्यों कर भायेगा?

छेड़ दिया अघोषित युध्द,

मैं आप्रेशन विजय पर जाऊॅ।।-- रणभेरी... 

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, बहुत सुन्दर रचना दिल में जोश जगाती है. बहुत बहुत बधाई.हिंदी की रचनाओं में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से बचना उत्तम रहता है. जैसे इस पद्य में आपरेशन की जगह अभियान लिखा जाना अच्छा होता. सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 5, 2013 at 11:38am

आ0 लड़ीवाला जी,   आपके स्नेह और मातृभूमि के प्रति प्रेम व जोश को सादर नमन्। आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर, 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 4, 2013 at 7:46pm

दिल में जोश भरे जज्बे की श्याही में भीगी कलम से लिखी रचना प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे भाई श्री केवल प्रसाद जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2013 at 7:09pm

आ0  कुन्ती जी,  जी मैम!  हमारी शान्ति को सदा ही कमजोरी मानी गई है।  इसका जवाब हमें देना ही चाहिए।  आपके स्नेह और प्रसंशा के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2013 at 7:06pm

आ0  कुशवाहा जी,  वन्दे मातरम्!  आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2013 at 7:04pm

आ0 श्याम नारायण जी,   आपके स्नेह और प्रसंशा के लिए हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by coontee mukerji on May 4, 2013 at 5:26pm

विकास पथ पर हुए अग्रसर,

वैरी को़ क्यों कर भायेगा?

छेड़ दिया अघोषित युध्द,

मैं आप्रेशन विजय पर जाऊॅ।।-- रणभेरी...

शान्ति-शक्ति को बना चुनौती,

मूर्खता का परिचय दिया।

हमें इच्छा मृत्यु वर मिला,

मैं मृत्युंजयी कहलाऊॅ।।............आज के  परिवेश  में  बहुत  सटिक बैठा है.....  केवल प्रसाद जी ......../ सादर  / कुंती

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 4, 2013 at 2:05pm

वंदे मातरम 

Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2013 at 11:36am
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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