ईश्वर ने चाहे मुझको
खुशियाँ कम दे दी ,
मगर अच्छा किया कि
हाथ में मेरे कलम दे दी .
जब भी आँसू बहे आँखों से
शब्द बन के उतर जाते .
होती न गर कलम हाथ में
कैसे ग़म ये निकल पाते ,
थोड़ी सी मिली खुशियों में
ज़हर बनके घुल जाते .
हम घुट-घुट कर कबके
यहाँ पर मर जाते ,
इतना सारा ज़हर पीके हम
भला कैसे फिर जी पाते .
इसी कलम ने ज़हर निकाला
जब-जब दर्द ने डंक मारे ,
इसी कलम की बदौलत
आज हम साँस है ले पाते
Comment
आप सभी का मेरी कविता "कलम " को सराहने के बहुत-बहुत धन्यवाद.
ओबीओ मंच पर आपकी प्रथम रचना देख रहा हूँ ,पूजा अग्रवाल जी मन के भाव प्रकट करने का माध्यम कलम है है
बधाई स्वीकारे
आ० पूजा जी:
//होती न गर कलम हाथ में
कैसे ग़म ये निकल पाते ,//
सरल शब्दों में दर्द की सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई। आशा है शीघ्र आपकी ऐसी ही और
रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।
सादर,
विजय निकोर
मन की बातों को बाहर लाने के अवसर को धन्यवाद करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया.
आ0 पूजा जी, अतिसुन्दर भाव,’’इसी कलम ने ज़हर निकाला
जब.जब दर्द ने डंक मारे,
इसी कलम की बदौलत
आज हम साँस है ले पाते ’’। शुभकामनाओ सहित हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आपका इस मंच पर स्वागत है. आपकी रचनाधर्मिता के पहलुओं को समक्ष करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई.. .
शुभेच्छाएँ
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