क़ृष्ण तुम बंसी बजाना
उन्मुक्त हो मुक्त गगन में,
छेड़ू मैं कोई तान प्यारी,
मधुर रस भरी प्रेम की,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
गाएँगे सब पशु-पक्षी ,
आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,
बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
भक्ति रस घुलेगा हवाओं में,
पहुँचेगा वृंदावन की गलियाँ,
नाचेगी सब गोपियाँ वहाँ ,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
जग जायेंगे योगी ध्यान से,
करेंगे भक्ति का मद पान ,
मदहोश करके सबको,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
प्रेम फैले इस जहाँ में,
टूट जायें दीवारें सब,
झूमें सब तुम्हारे प्रेम में,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
एक दूसरे से प्रेम हो,
लगाव हो, जुड़ाव हो,
मिलकर गायें भक्ति का गीत,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
Comment
कूनती मुकेरजी मैडम कविता पसंद आई ,यह मेरा सौभाग्य है ।धन्यवाद ।
सिंह जी सुभेच्छा के लिए धन्यवाद ।
एक दूसरे से प्रेम हो,
लगाव हो, जुड़ाव हो,
मिलकर गायें भक्ति का गीत,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
बस इसी की जरूरत है!
कृष्ण बंशी बजायेंगे और हम सभी नाचेंगे गायेंगे!
गाएँगे सब पशु-पक्षी ,
आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,
बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।.................बहुत सुंदर /
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
sundar bhavabhivyakti...badhai ..
सुन्दर भाव प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति . .बधाई .
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