माँ तुम्हारा वो एहसास
माँ
तुम मेरी माँ हो,
मै ये जानता हूँ ;
पहचानता हूँ ..
तुमने
मेरा हाथ थाम
चलना सिखलाया था। .
मेरे कदम
जब डगमगाए थे;
तुमने
हाथ बढ़ा थामा था।
जब भी कभी
मै गिरा
तुमने
मुझे उठा
मेरी सिर
प्यार से सहलाया था।
आज
जब तुमने
अपना हाथ
मुझे थमाया था,
तुम्हारा वही
कोमल एहसास
मुझे सहला गया था।
मुझे मालूम है :
आज मुझे
तुम्हारा हाथ थामना है;
और
मुझे भी तुम्हारे
उसी एहसास को
फिर से
एक बार
जीना है।
तुमने जो मुझे दिया;
आज मुझे,
मेरी प्यारी माँ ...!
तुमको वो लौटना है।
और ...और ...
तुम्हारी
वही ममता और स्नेह का
अमर वरदान
मुझे फिर से जीना
और पाना है।
वीणा सेठी ...........
,
Comment
आदरणीया सुन्दर भावपूर्ण रचना किन्तु वरिष्ठ जनो से मैं भी सहमत हूँ माँ का कर्ज चुकाने की बात करना नादानी है.सादर.
माँ के अहसासों के साथ व्यापार या आदान-प्रदान तो होता ही नहीं. सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियों के फेर में कुछ असंयमित भाव शब्द पा गये हैं.
वैसे आप जैसे का सतत प्रयासरत रहना काव्यजगत की मांग है.
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .
सुन्दर रचना हार्दिक बधाई वीणा जी //////
माँ के ममत्व को जिया तो जा सकता परंतु लौटाया नहीं जा सकता ..सुन्दर भाव पूर्ण रचना वीणा जी बधाई
मातृ दिवस पर रची सुन्दर रचना के फ़रिए माँ का अहसास करने के लिए हार्दिक बधाई वीणा सेठी जी
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
तुमने जो मुझे दिया;
आज मुझे,
मेरी प्यारी माँ ...!
तुमको वो लौटना है।
और ...और ...
तुम्हारी
वही ममता और स्नेह का
अमर वरदान
मुझे फिर से जीना
और पाना है।
anvart prakriya
saadr badhai,
बहुत सुंदर एहसास / सादर / कुंती
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