आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है
अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।
ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।
धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,
ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।
कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,
रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।
अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,
सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।
खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,
ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या चीज़ है।
खूबसूरत - खूबसूरत सारी दुनिया है मगर,
मैं ते हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है।
किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,
तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।
शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,
गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।
सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"
शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।
Comment
विजय मिश्र जी, स्वागत व धन्यवाद.......आपकी दाद पाकर मन हर्षित हो रहा है।
आदमी पूरी तरह बेतरतीब है आज के भागदौड के समय में...........बाकी मेरा नाम सूजन नहीं है...सुजान है
भाई सूबे सिंह सुजान जी, इस ग़ज़ल पर कुछ कहूँ, उससे पहले एक जिज्ञासा बन रही है कि आपने इस ग़ज़ल के शीर्षक मे तरही शब्द क्यो लगाया है ?
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,
ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या चीज़ है।
ये मेरे लिए ..बहुत खूब
सादर बधाई
आदरणीय सुजान जी
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