पश्चिमी तूफां से हैं सब दर-ब-दर हम क्या कहें
आदमीयत हो गयी है बेअसर हम क्या कहें
दौर धोखों और फरेबों का चला है इस कदर
रहजनी अब कर रहे हैं राहबर हम क्या कहें
सच बयानी आजकल घाटे का सौदा हो गया
झूठ कहना हो गया है अब हुनर हम क्या कहें
जिंदगी सब जी रहे हैं जिंदगी की खोज में
है यहाँ पर कौन किसका हमसफ़र हम क्या कहें
लूटते शैतान इज़्ज़त चीखती हैं बच्चियां
पत्थरों का शहर है, पत्थर बशर हम क्या कहें
आते जाते अब सिपाही फिर करें उनको सलाम
चोर के फिर जीतने की है खबर हम क्या कहें
हम उजालों को तरसते ही रहे फुरकत के बाद
"दीप" काली रात ठहरी इस कदर हम क्या कहें
संदीप पटेल “दीप”
Comment
वाह बहुत सुन्दर संदीप भाई
आदरणीय केवल प्रसाद जी , आदरणीय प्रदीप सर जी, आदरणीय श्याम नारायण सर जी आप सभी का इस उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
हम उजालों को तरसते ही रहे फुरकत के बाद
"दीप" काली रात ठहरी इस कदर हम क्या कहें
वाह दीप जी क्या शानदार गजल कही
बधाई
आ0 संदीप भाई जी, वाह! क्या खूब। शानदार गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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