For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मंडी से आढ़त तक सबकी पर्ची कटी हुई !

ग़ज़ल - 

कुछ होनी कुछ अनहोनी का मेला  ही तो है ,

ये जीवन क्या माटी का एक ढेला ही तो है ।

साँसों की झीनी चादर पर रिश्तों के गोटे ,

भीड़ में भी होकर  हर शख्स अकेला ही तो है ।

इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,

सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।

सुख दुःख का संगम तट ये तन और सारा जीवन ,

आशाओं  उम्मीदों का एक रेला ही तो है ।

सूली ऊपर सेज पिया की छूने को तत्पर ,

हर कबीर अपने उस पी का चेला ही तो है ।

बहर काफिया और रदीफ़ में उलझा उलझा सा ,

कहते जिसको शायर वो अलबेला ही तो है ।

मंडी से आढ़त तक सबकी पर्ची कटी हुई ,

देखो तो ये दुनिया भी एक ठेला ही तो है ।

                                       @ अरुण पाण्डेय "अभिनव"

                                                 [20052013 ]

Views: 853

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज लाली बटाला on May 21, 2013 at 9:49pm

मंडी से आढ़त तक सबकी पर्ची कटी हुई ,

देखो तो ये दुनिया भी एक ठेला ही तो है । Bahut khoob Abhinav ji ! 

Comment by Abhinav Arun on May 21, 2013 at 2:23pm

आदरणीय श्री विजय जी हार्दिक रूप से आभार !!

Comment by राजेश 'मृदु' on May 21, 2013 at 12:59pm

आनंद आ गया इस गजल को पढ़कर, हार्दिक बधाई आपको, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 21, 2013 at 12:59pm

जय हो.. . क्या फ़लसफ़ाना अंदाज़ ले कर आये इस बार आप, भाई जी.. !

अश’आर छूते हुए जाते हैं. कथ्य में अलबत्ता क्लिशे है, लेकिन सुहाता है.  सभी शेर बतियाते हुए से हैं, जिसे मैं ग़ज़ल की पहली पहचान मानता हूँ.

तभी तो यह शेर एक्दम से भा गया. ..

मंडी से आढ़त तक सबकी पर्ची कटी हुई ,

देखो तो ये दुनिया भी एक ठेला ही तो है ।.. . . . ओह ! .. .

एक बात : 

मैं समझता हूँ आपने मिसरे में १३ गाफ़ लिये हैं.

Comment by विजय मिश्र on May 21, 2013 at 11:38am
"इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,
सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।"

--- गजल पढते-पढते बरबस एक आदर भाव हृदय में आपके लिए उमरा ,जिसे मैं आपको समर्पित कर रहा हूँ .भाव का गुढ़ और भाषा की सहजता प्रभावित करने को प्रयाप्त है .जो झंकृत करदे वही सफल रचना है .शुभेच्छा पाण्डेयजी .
Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2013 at 10:20am

वाह, वाह! बहुत ही सुन्दर! मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें।

Comment by shalini kaushik on May 21, 2013 at 12:55am
.सुन्दर
Comment by वीनस केसरी on May 21, 2013 at 12:31am

इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,

सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।


सुख दुःख का संगम तट ये तन और सारा जीवन ,

आशाओं  उम्मीदों का एक रेला ही तो है ।

क्या कहने, शानदार 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 11:14pm

आ0 अभिनव अरून भाई जी, वाह! बहुत सुन्दर-

’सूली ऊपर सेज पिया की छूने को तत्पर,
हर कबीर अपने उस पी का चेला ही तो है ।’
शानदार भावों के लिए तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 20, 2013 at 10:58pm

वाह वाह अभिनव भाई जी वाह लाजवाब शानदार ग़ज़ल सभी के सभी अशआर शानदार धारदार हुए है खास कर ये कुछ ज्यादा पसंद आये. इनके लिए विशेष तौर पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

साँसों की झीनी चादर पर रिश्तों के गोटे ,

भीड़ में भी होकर  हर शख्स अकेला ही तो है ।

इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,

सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।  आहा वाह बेहद उम्दा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service